जिन लोगों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व यहाँ तक कि प्राण तक न्यौछावर कर दिया,नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी उन महान सच्चे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों में से एक हैं जिनके बलिदान का इस देश में सही आकलन नहीं हुआ देश को स्वतन्त्रता सिर्फ गांधी जी और नेहरू जी के कारण ही मिली। हमारे भीतर की इस भावना ने अन्य सच्चे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को उनकी अपेक्षा गौण बना कर रख दिया। हमारे समय में तो स्कूल की पाठ्य-पुस्तकों में यदा-कदा “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी…”, “अमर शहीद भगत सिंह” जैसे पाठ होते भी थे किन्तु आज वह भी लुप्त हो गया है
सुभाष चंद्र बोस | |
पूरा नाम | सुभाष चंद्र बोस |
प्रचलित नाम | नेताजी |
जन्म | 23 जनवरी, 1897 |
जन्म भूमि | कटक, उड़ीसा, भारत |
अविभावक | जानकीनाथ बोस, प्रभावती |
धर्म | हिन्दू |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम |
विद्यालय | प्रेज़िडेंसी कॉलेज, स्कॉटिश चर्च कॉलेज, केंब्रिज विश्वविद्यालय |
शिक्षा | स्नातक |
प्रमुख संगठन | आज़ाद हिन्द फ़ौज़ |
भारत सरकार ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को 1992 में 'भारत रतन' से सम्मानित किया| आजादी के लिए उन्होंने जितने भी कार्य और प्रयास किये उन्हें भुलाया नहीं जा सकता| वे हम सभी कि दिलों में हमेशा अमर रहेंगे
सुभाष चंद्र बोस, प्यार नेताजी के रूप में कहा जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक था भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सफल परिणति में सुभाष चन्द्र बोस का योगदान कम नहीं है. उन्होंने भारतीय इतिहास के इतिहास में अपनी सही जगह का खंडन किया है उन्होंने इंडियन नेशनल आर्मी ( आजाद हिंद फ़ौज ) की स्थापना के लिए भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने और भारतीय जनता के बीच पौराणिक दर्जा हासिल किया !
सुभाष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय देश भर में घूमें और निष्कर्ष निकाला-
हमारी सामाजिक स्थिति बद्तर है, जाति-पाति तो है ही, ग़रीब और अमीर की खाई भी समाज को बाँटे हुए है। निरक्षरता देश के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है। इसके लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। सुभाष चंद्र बोसकांग्रेस के अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने कहा-
मैं अंग्रेज़ों को देश से निकालना चाहता हूँ। मैं अहिंसा में विश्वास रखता हूँ किन्तु इस रास्ते पर चलकर स्वतंत्रता काफ़ी देर से मिलने की आशा है।क्रान्तिकारियों को बोस ने सशक्त बनने को कहा। वे चाहते थे कि अंग्रेज़ भयभीत होकर भाग खड़े हों। वे देश सेवा के काम पर लग गए। दिन देखा ना रात। उनकी सफलता देख देशबन्धु ने कहा था-
मैं एक बात समझ गया हूँ कि तुम देश के लिए रत्न सिद्ध होगे।सुभाषचन्द्र बोस उन महान सच्चे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों में से एक हैं जिन्होंने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व यहाँ तक कि प्राण तक न्यौछावर कर दिया !
नेताजी ने हमें -"जय हिन्द," और " तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा" का महामन्त्र दिया ।
स्वदेशाभिमान के बारे में नेताजी न कहा था.....
यदि
स्वदेशाभिमान सीखना है,
तो
मछली से सीखो ...
जो
स्वदेश (पानी ) के लिए
तड़प - तड़प कर
अपनी जान दे देती है।
मेरी पसंद और नेता जी को समर्पित यह कविता आपको समर्पित कर रहा हूँ ....!
है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं।
है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।।
अक्सर दुनियाँ के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं।
लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।।
यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है।
जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जयहिन्द निशानी है।।
प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था ।
पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।।
यह वीर चक्रवर्ती होगा , या त्यागी होगा सन्यासी।
जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी।।
सो वही वीर नौकरशाही ने,पकड़ जेल में डाला था ।
पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।।
बाँधे जाते इंसान,कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं।
काया ज़रूर बाँधी जाती,बाँधे न इरादे जाते हैं।।
वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था,जो मौका पाकर निकल गया।
वह पारा था अंग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।।
जिस तरह धूर्त दुर्योधन से,बचकर यदुनन्दन आए थे।
जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के,पहरेदार छकाए थे ।।
बस उसी तरह यह तोड़ पींजरा , तोते-सा बेदाग़ गया।
जनवरी माह सन् इकतालिस,मच गया शोर वह भाग गया।।
वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे,ये धूमिल अभी कहानी है।
हमने तो उसकी नयी कथा,आज़ाद फ़ौज से जानी है।।
सुभाष चन्द्र बॉस जी पर लिखी ये कविता अवनीश आनंद जी के ब्लॉग से मिली
छवि और जानकारी गूगल से साभार
भारत माता से महान सपूत को मेरा सलाम
-- संजय भास्कर