आज हर चेहरा सच्चा नहीं
हर चेहरे पर नकाब है
सच्चाई को ढकता हुआ नकाब
कभी इन चेहरे को ढके हुए
नकाब हटा कर तो देखो
देखते ही रह जाओगे
फिर सोचोगे, जो देखा था , वो धोखा था
हर किसी का चेहरा होगा अनजान
जो देखा, जो सोचा, सब झूठ था !
अपनी बातो से दूसरो को भी
झूठा बनाया !
पर कब तक छुपायेगा
एक दिन तो सच सामने आयेगा
और उस दिन वह नकाब हटाएगा.......!!!!!
@ संजय भास्कर
64 टिप्पणियां:
नक़ाबों के साथ जीने की आदत हो गई है. जब सच समाने आता है तो वह भी भला-सा नक़ाब पहन कर आता है :))
Bahut sundar- sahi kaha
Aisa hi kuch meri ek kavita mein maine kehne ki kosish ki, sirshak tha "Ek Chehre mein kai chehre chupaate hain log... http://www.poeticprakash.com/2012/07/blog-post_08.html
यहाँ तो एक के ऊपर एक कई नकाब है....
बेहतरीन रचना..
अनु
हर आदमी में होते हैं दस-बीस नकाब....
अच्छी रचना.....
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग बहुत सार्थक अभिव्यक्ति
वाह,,,बहुत खूब संजय जी,,
जिसको देखो सभी ने,पहना हुआ नकाब
जब भी हटाकर देखो , हो जाता बेनकाब,,,
RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
इतने नकाब होते हैं कि असली चेहरे कि सच्चाई सामने ही नहीं आ पाती .... अच्छी प्रस्तुति
वाह ... बेहतरीन
बहुत ही सही कहा है आपने ...
संजय ....किसने अपना असली चेहरा दिखा दिया ?
आज तुम्हारी ऐसी सोच :)))
नकाब हटते ही असली चेहरा सामने आता है |अच्छी के लिए बधाई |
आशा
nakab ke andar asli nakli chehra...:)
संजय जी, सत्य कहा आपने.
नकाब तो नकाब ही है ...सख्त और बिना भावनाओं वाला ....और नकाब उतरते ही असली ...मुस्कुराता चेहरा सामने आता है ...!
sach kaha aapne har chahre ke upar ek nakab hi hota hai
सही कहा संजय ये नकाबों की दुनिया है...
उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
सही है, सच तो कभी न कभी सामने आ ही जाता है।
सच कहा, न जाने कैसे कैसे नकाब में हैं लोग, जो असली चेहरा दिखाते ही नहीं . बधाई संजय
chehre par nakab hai aur nakab me chhupr chehre hai jinki vajah se shayad kuchh pal ki rahat hai...jane sach kya hai???
khoobsurat rachna..
सही लिखा है संजय जी..... नकाबों की इस दुनिया में असली चहरे सामने कहाँ आते हैं?
हर व्यक्ति नकाब के साथ जीता है..
नकाब के पीछे का चेहरा कौन जाने ...
यही तो है सच्चाई ..
बेहतरीन रचना...
:-)
औरों के लिये जैसा भी हो, पर दर्पण में देखने पर यह नकाब पहचान में नहीं आता है।
सच का सामना तो हर इंसान को करना ही पडता है गधा शेर कि खाल ओढकर जंगल में ज्यादा दिन तक मंगल नहीं गा सकता है
बहोत ही खूबसूरत प्रस्तुति...............
मुखौटों और आवरणों की दुनिया है,आजकल.
पर आदत अच्छी है मुस्कुराने की चाहे नकाब के आगे हो या पीछे
जीवन भर मुखौटे नहीं पहने जा सकते ....
हर आदमी में होतें हैं दस बीस आदमी ,जिसे भी देखना दस बीस बार देखना .अब तो राजनीति में भी सिर्फ मुखोटे ही हैं बोले तो रोबोट .बढ़िया प्रस्तुति .
...दिमाग की आँखों से देखो ।
बहुत खूब जनाब
जरा इसे भी सुनिये आप
आप चेहरे पर कुछ
नकाब देख कर आये हैं
इसलिये इतना भड़भड़ाये हैं
यहाँ तो चेहरे मिलते ही नहीं
सबके चेहरे नकाब पे होते हैं
हम चेहरे हटा के धो लेते हैं
बेनकाब कोई नहीं होते हैं !
बिलकुल सत्य कहा है आपने संजय भाई, बेहतरीन सुन्दर रचना
bilkul sahi hai aaj kal har chehre pr ek nakab hota hai koi kisi ka asli chehra nahi janta
नकाबों का कोई अंत नहीं ..दोहरे मापदंडों में जीते इंसानी फितरत का सटीक चित्रण .....बहुत बढ़िया प्रस्तुति
कितने ही पर्दों में हो सच एक ना एक दिन सामने आता ही है. लेकिन नकाब में छुपाने वाले यह बात भूल जाते हैं.
सुंदर प्रस्तुति.
सुन्दर प्रस्तुति।
सच्चाई बयान करती शानदार रचना |
मेरी नई पोस्ट:-
♥♥*चाहो मुझे इतना*♥♥
नकाब तले एक सच्चाई है जो सभी छुपाते हैं|पर जैसा कि आपने कहा "एक दिन तो सच सामने आयेगा
और उस दिन वह नकाब हटाएगा.......!!!!!"
बहुत ही उम्दा रचना |
सुन्दर रचना, ये नकाब सामने जो भी हो उसके मुताबिक बदलते रहते हैं, जैसा रिश्ता वैसा नकाब, बैठक खाने में मेहमान से मिलते हुए ये नकाब पहन लिए जाते हैं.असली चेहरा तो घर के अन्दर छुपापड़ा है, अपने घर के भीतर जो ठीक ठीक झांक ले उसे वह दिखाई पड़ता है
धन्यवाद आपकी प्रेरक रचना के लिए आपका अभिनन्दन
मैंने तो बहुत पहले से ही एलान कर रखा है:
देख लो नोंच के नाखून से मेरा चेहरा,
दूसरा चेहरा लगाया है न चिपकाया है!!
एक दिन तो सच सामने आयेगा
और उस दिन वह नकाब हटाएगा.......!!!!!aisa hi ho.....
नकाब के साथ जीते - जीते लोग अपना असली चेहरा भी भूल जाते हैं, उसे ही सच्चाई समझ लेते हैं... बेहतरीन रचना
nice posting for nakab. me come to some time blog world.
आज ब्लॉग के जरिये आप से परिचय हुआ .अच्छा लगा आपका और मेरा विचार एक जैसा है. यह दुनिया कुछ नकाब में हैं और कुछ मुखौटे के पीछे हैं. असली तो दिखाई नहीं देते. ब्लॉग पर आते रहिये और अपनी राय देते रहिये. आभार.
बहुत सुन्दर
अब तो इन नकाबों के साथ जीने की आदत सी हो गयी है भूषण अंकल की बात से पूरी तरह सहमत हूँ
बहुत सच्चा है ये नकाब..!!
नक़ाबों की दुनियां में सच्चा चेहरा कहाँ पहचाना जाता है...बहुत सुन्दर..
एक दिन तो सच सामने आयेगा
और उस दिन वह नकाब हटाएगा.......!!!!!
sach chhipaye nahin chhipta. sach kaha aapne.
mere blog par aane ke liye shukriya.
http://udaari.blogspot.in
सही कहा आपने संजय भाई, शायद ही कोई असली चेहरे में जीता हो ,सभी नकाब ही तो लगाते हैं
bahut badhiya....
sahi kaha aajkal kon sa chehra bina banawat hai jaan paana mushkil hai... sunder rachna
shubhkamnayen
sahi kaha aajkal kon sa chehra bina banawat hai jaan paana mushkil hai... sunder rachna
shubhkamnayen
नकाब को हटाना कहीं ख्बाब बनकर ही न रह जाये.
हनुमद कृपा हो तो नकाब से मुक्ति मिल सकती है संजय भाई.
आभार.
सुंदर .
एक चेहरे पे कई चेहरे लगी लेते हैं लोग ।
शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
बकौल लता जी-
जब भी जी चाहे , नयी दुनिया बसा लेते हैं लोग
एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग |
अच्छी कविता |
सादर
सुंदर प्रस्तुति...
दिनांक 9/10/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
कभी कभी नकाब बुरी नजरो से बचने के लिये पहना जाता है और कभी बुरे चेह्रे को छुपाने के लिये....,सुंदर रचना...
सच को उजागर करती सार्थक रचना
बहुत सुंदर
शानदार प्रस्तुति
सादर---
शरद का चाँद -------
आज का कटु सत्य !
सुन्दर ,सार्थक प्रस्तुति !
एक मुखौटा उतार दो तो दूसरा पहन लेते है लोग
बिन पानी के मच्छली को साँस नही आता वैसा ही है लोगों के साथ.
झूठ के पाँव नहीं होते इसलिए वह उड़ता फिरता है लेकिन कभी न कभी सच से उसका सामना होता ही है ...
..
नकाबों पे नकाब
बेहसाब!
...बहत बढ़िया..
प्रकाश जैन जी,मैंने आपकी कविता पढ़ी।बहुत खूब लिखा हैं आपने।।जबरदस्त।।
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