आप सभी ब्लॉगर साथियों को मेरा ..........सादर नमस्कार .........कई दिनों से कविताये लिखने के बाद सोचा आलेख लिखा जाये लगभग कई दिन के अवकाश के बाद पुन: उपस्थित हूँ । आज सभी शहीद की कुर्बानियों को भूलते जा रहे है लेकिन जब कभी भी किसी शहीद स्मारक को देखते है तो उसकी याद आती है इसी पर यह आलेख लिखा है आशा करता हूँ आप सभी को पसंद आएगा ...!
शहीद स्मारक ही दिलाते है शहीदों की याद
देशभक्तों ने अपना लहू बहाया वहा पर अभी तक स्मारक नहीं बने। जो बने भी हैं, वे लुप्त होने के कगार पर हैं। 1857 के गदर से लेकर अगस्त क्रांति तक लगातार आंदोलन हुए। सभी आंदोलनों में आगरा जनपद के कई देशभक्तों ने जोरदारी से भाग लिया। इन रणबाकुरों ने जिन स्थानों को क्रांति का केंद्र बनाया, युवा पीढ़ी उनसे अनजान है।
वह नहीं जानती कि उनके आसपास में भी ऐसे स्थल हैं, जहा से आजादी की लड़ाई लड़ी गयी। नूरी दरवाजा, हींग की मंडी और मोती कटरा में सन् 1926 से 29 तक सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, राजगुरु, सुखदेव आदि ने फैक्ट्री का संचसलन किया। जहा बम बनाए जाते थे। नूरी दरवाजे वाले कमरे जरूर सभी की निगाह में हैं। लेकिन अन्य कमरे कहां हैं, इसकी जानकारी लोगों को नहीं।
सन् 1942 तो स्वाधीनता आंदोलन की अंतिम क्रांति थी। चमरौला रेलवे स्टेशन पर एक आंदोलन किसानों ने किया। जिसमें अंग्रेजों की गोलियों से उल्फत सिंह, साहब सिंह, खजान सिंह, सोरन सिंह आदि शहीद हो गए। 125 नागरिक घायल हुए थे। यहा एक स्मारक बना हुआ है, जो धीरे-धीरे ध्वस्त होता जा रहा है।
इस घटना के बारे में स्थानीय लोग भी अनजान बने हुए हैं। लेकिन शहीद स्मारक अवश्य सभी शहीदों की याद दिलाता है। जिसे विकसित और सुरक्षित रखने की जरूरत है।
चित्र :- गूगल से साभार
-- संजय भास्कर