वह मजदूर
जिसमे उत्त्साह था अदम
सह चूका था जो हर सितम
रक्त नलिकाए भी दौड़ रही थी उसकी
पूरी चुस्ती फुर्ती के साथ
जो इस खोखले समाज की राजनीति से
बहुत दूर |
कंधे पर फावड़ा लिए चला जा रहा था
अनजान डगर पर निश्चित बेपनाह
चला जा रहा था इस समाज समुदाय की
गन्दी राजनीति से
बहुत दूर - वह मजदूर
राजनीति सीमित थी उसके लिए यही पर
नसीब था मात्र उसका - दो वक्त की रोटी
मिल जाये सुख चैन से ,
और चलता रहे किसी तरह से
परिवार का गुजर - बसर
ऐसा था ............ वह मजदूर !
चित्र :- ( गूगल से साभार )
-- संजय कुमार भास्कर
152 टिप्पणियां:
आपका कहना सही है संजय जी
एक मजदुर जो मेहनत करके अपने परिवार का गुजर बसर करता है ..उसकी संतुष्टि सिर्फ उसकी मेहनत है ...आपका आभार इस कविता के लिए
Sirf wah majdur nahi des ke har majdur ki yahi kahani hai unhe rajniti se kya lena dena sirf parivar ka guzar ho jaye unke liye yahi bahut hai
सच कहा संजय्………एक मजदूर को इसके अलावा और कुछ चाहिये भी नही होता दो वक्त की रोटी के जुगाड मे ही उसकी ज़िन्दगी गुजर जाती है वो बेचारा क्या जाने राजनीति और उसके दांव पेंच्………बहुत सुन्दर चित्रण किया है।
Bikul sach kaha hai sanjay ji , ek majdur ko duniya se koi wasta nahi khas taur se rajniti se to bikul bhi nahi, pr ye rajnitiki jo hai ye use bhi nahi chodte hai ,
sunder bahvpurn rachna k liye badhai........
बहुत सटीक और सार्थक कविता। मजदूरों को यही हाल है दो जून की रोटी मिल जाय तो बहुत है। पर एक बात है संजय जी राजनीति से उसका भी वास्ता है। राजनीति की मार ही है कि उसके मुंह का निवाला छिन कर टाटा बिरला और अंबानी देश की 25 प्रतिशत पुंजी पर कब्जा कर बैठे है। काला धन भी इन्हीं का निवाला..........
सच में .. नई पीढ़ी को जब इन गंभीर प्रश्नों पर सोचते देखते हैं हैं तो सुकून मिलता है....
लगता है कि हमारी पीढ़ी अभी चुकी नही है..
अभी संभावनाएं शेष हैं..
अभी आग बाकी है..
मजदूर की परिस्थिति और आज के सच को सामने रखते हुए एक बेहतरीन रचना है यह...
bahut badhiya ....
chalo ab ye kavyalok pe bhi dal do...
aap sabhi apni apni kavita bhi kavyalok pe post karo...:)
good going sanjay..
majdooor ........apni dukh ko jeeta hua chala ja raha tha..:)
hai na!!!!
ek sarthak rachna...sanjay!1
speechless ...very nice
speechless ...very nice
सच्चाई बयां करती हर एक पंक्ति ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
यह मजदूर का मन है या कवि का.
बहुत सुन्दर चित्रण किया आपने
मगर
हाय ! समझ पाता कोई उसके मन की व्यथा को
सुन पाता कोई उसके मन की खामोश कथा को
बहुत ही बेहतरीन तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है संजय भाई... बहूत खूब!
मजदुर क्या संजय भाई इस देश के हर मध्यम वर्गीय परिवारों का यही हाल है।
एक मजदूर बेचारा - मेहनत का मारा बेचारा !कितनी लाचारी हे उसकी,अगर वो मजदूरी नही करेगा तो अपने परिवार को कैसे रोटी -पानी की व्यवस्था करेगा --शायद उसकी पूरी रात इसी उधेड़ बुन में निकल जाती होगी की कल क्या होगा ? संजय जी ,बहुत सार्थक लिक़ से हटकर आपने कविता लिखी हे ---बधाई हो--- :)
बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने, आभार.
संजय भाई मजदूर के माध्यम से आपने पूरे मध्यम वर्ग को पेश किया है
मजदूर और किसान को दो वक्त की रोटी मिल जाये इसी मे उसकी पूरी दुनिया है
संजय भाई मजदूर के माध्यम से आपने पूरे मध्यम वर्ग को पेश किया है
मजदूर और किसान को दो वक्त की रोटी मिल जाये इसी मे उसकी पूरी दुनिया है
सच को ब्यान करती हुई बेहतरीन कविता
शुभकामनाये
लीक से हटकर ! बहुत ही शानदार !
उसके पसीने का ही मोल है।
अच्छी कविता लिखी है आपने। मेरी बधाई स्वीकार करें।
bahut sunder guru ji
रक्त नलिकाए भी दौड़ रही थी उसकी
पूरी चुस्ती फुर्ती के साथ
जो इस खोखले समाज की राजनीति से
बहुत दूर |
http://unluckyblackstar.blogspot.com/
bhejo guru ji
संजय जी,
मजदूर की ज़िन्दगी की यह कविता लिखते लखते आपने बड़े पते की बात की तरफ इशारा किया है ,राजनीति वही लोग करते हैं जो रोटी की क़ीमत को भूल जाते हैं !
यथार्थ अभिव्यक्ति !
धन्यवाद !
अत्यंत ही सटीक रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
bohot sachchi nazm hai dost...bohot khoob
कंधे पर फावड़ा लिए चला जा रहा था
अनजान डगर पर निश्चित बेपनाह
चला जा रहा था इस समाज समुदाय की
गन्दी राजनीति से
बहुत दूर - वह मजदूर
in panktiyo ne to dil jeet lia
bahut khoob aur sahi likha apane
mazdoor ki yahi situation hain...
ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
संजय जी,
वह मजदूर
जिसमे उत्त्साह था अदम
सह चूका था जो हर सितम
रक्त नलिकाए भी दौड़ रही थी उसकी
पूरी चुस्ती फुर्ती के साथ
जो इस खोखले समाज की राजनीति से
बहुत दूर |
यही एक सार्थक जिन्दगी है!
बहुत ही सुंदर रचना है
तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार
@ केवल राम जी..
बिलकुल सही कहा आपने केवल जी..
@ आलोकिता जी..
देस का हर मजदूर यही सोचना है
@ वंदना जी..
एक मजदूर को इसके अलावा और कुछ चाहिये भी नही होता दो वक्त की रोटी के जुगाड मे ही उसकी ज़िन्दगी गुजर जाती है वो बेचारा क्या जाने राजनीति और उसके दांव पेंच् कहा सह पायेगा
@ अमरेंदर जी..
बहुत बहुत आभार आका अमरेंदर जी..
@ अरुण साथी जी..
राजनीति की मार ही है कि उसके मुंह का निवाला छिन कर टाटा बिरला और अंबानी देश की 25 प्रतिशत पुंजी पर कब्जा कर बैठे है। काला धन भी इन्हीं का निवाला..........बिलकुल सही कहा आपने अरुण जी..
@ अमित तिवारी जी..
आज यही हालात है मजदूरों की
@ आनंद जी..
बहुत बहुत आभार
@ मुकेश सिन्हा जी..
बहुत बहुत आभार
@ संध्या जी..
आभार
@ सदा जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ....आप सबका धन्यवाद
majdoor ka yahi sapna hota hai ke uske parivaar ka gujar basar chalta rahe...
achhi post
Mazdoor to hamare samajkaa avibhajy pahiya hai!Iski mazdooree se to samaj chal raha hai!
Nihayat sundar rachana!
जो राजनीति से दूर है , वही सुखी है ।
एक कवि मन भी रंग मंच के कलाकार कि तरह कितने रूप धरता है आपकी कविता इसका एक अच्छा उदहारण है
अनजान डगर पर निश्चित बेपनाह
चला जा रहा था इस समाज समुदाय की
गन्दी राजनीति से
बहुत दूर - वह मजदूर
.
अति सुंदर .संजय कवी तो मैं नहीं लेकिन आप की भावनाओं की कद्र करता हूँ. अच्छा लिख रहे हैं आप.
विचार सुन्दर है किन्तु विस्तार के प्रभाव मे सुधार की अकूत सम्भावनाऍं।
शानदार लक्ष्य चित्रण. बधाई...
सामाजिक विषमताओं का अच्छा चित्रण करती राचना !
@>-;--;--
खुशी का गुलाब मेरी तरफ से ...
स्वीकार करे प्यार, दोस्ती, विश्वास ,भरोसा .. का एक प्रतीक के रूप में मेरा गुलाब!
truly brilliant..
keep writing..all the best
bahut khoobsurt
mahnat safal hui
yu hi likhate raho tumhe padhana acha lagata hai.
or haan deri ke liye sorry.
regards
Preeti
@ राहुल सिंह जी..
सच कहा आपने
@ अपर्णा जी..
समझ पाता कोई उसके मन की व्यथा को
सुन पाता कोई उसके मन की खामोश कथा को सच कहा आपने पलाश जी
@ शाह नवाज़ जी..
बहुत बहुत आभार
@ एहसास जी..
बहुत बहुत आभार
@ दर्शन कौर जी..
एक मजदूर बेचारा - मेहनत का मारा बेचारा सत्य कहा आपने
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
अब तो मज़दूरों और किसानों पर लिखी कविता पढकर लगता है कि निराला जी की भिक्षुक पढ़ रहा हूँ... जीवंत चित्रण किया है आपने!!
@ अरविन्द जांगिड जी..
@ दीपक सैनी जी..
@ प्रवीण पाण्डेय जी..
@ सोमेश सक्सेना जी..
@ ॐ कश्यप जी..
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
बहुत ही बेहतरीन तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है| धन्यवाद|
आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
वाह भाई...
बहुत अच्छे रचना है... भाव जबरजस्त हैं...
और चित्र तो शानदार...
आप तो गूगल वालों से कांट्रेक्ट कर लो...
behatar
काम करे मजदूर खून पसीना खाये और बैंक भरें नेता।--- सुन्दर कविता। बधाई।
बेहद सटीक और यथार्थपरक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
snajay bhaia jvab nhin . akhtar khan akela kota rajsthan
बहुत अच्छा लिखा है...जिसको दो वक्त की रोटी की फिकर है वो भला राजनीति क्या करेगा...अपने बच्चों का पेट पालले यही उसकी जरूरत है और विवशता भी...
बहुत सुंदर
भावों से लबरेज़ रचना.
सुन्दर रचना .
बिलकुल सच कहा है संजयजी आपने.. एक मजदूर की जिंदगी में क्या है बस दो वक़्त की रोटी और यही पाना उसके लिए सब कुछ होता है, उसे कहाँ फुर्सत राजनीती जैसे विषय पर सोचने की... जिंदगी की सच्चाई का मार्मिक चित्रण करती एक बेमिसाल कविता.........
राजनीति सीमित थी उसके लिए यही पर
नसीब था मात्र उसका - दो वक्त की रोटी
bahut kadi sachchayee se baree hui kavita hai.
मजदूर तो ऐसे ही होते हैं संजय जी .....
सत्य वचन, भास्कर जी। सार्थक और सटीक कविता।
बहुत सुंदर रचना, एक हक हलाल की कमाई इसे ही कहते हे, सलाम हे इन मेहनतकश लोगो को. धन्यवाद
सच्चे सुन्दर भाव ...सच्ची कविता .
@ ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी..
राजनीति वही लोग करते हैं जो रोटी की क़ीमत को भूल जाते हैं ! सही कहा आपने सर जी
@ ताऊ रामपुरिया जी..
@ सांझ जी..
@ चिराग जी..
@ ॐ जी..
@ बजरंग जी..
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
@ सवाई राजपुरोहित जी..
@ संजय चोरासिया जी..
@ मलखान सिंह जी..
@ क्षमा जी..
@ डॉ टी एस दराल जी..
@ रचना दीक्षित जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ....आप सबका धन्यवाद
कर्मठ आदमी के लियी काम ही सब कुछ है...उसे राजनीति से जाती से धर्म से कोई मतलब नहीं.....
तीसरी पंक्ति में "चुका" का "चूका" हो गया है शायद....
बहुत बढ़िया चित्रण...
bahut badhiya sanjay ji. Keep it up
सार्थक रचना ....
उसी के लिये हमारे पास कुछ नहीं है..
bhut khoob sanjay bhayi...basant panchmi ki hardik shubhkamnayen....
बहुत बढ़िया चित्रण...
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...
राजनीति सीमित थी उसके लिए यही पर
नसीब था मात्र उसका - दो वक्त की रोटी
आज का मजदूर तो राजनीति का खिलौना बनकर रह गया है।
अच्छी रचना।
बहुत ही बढ़िया यार तुने तो वापस खेतो और जो मासूम से दोस्त और पडोसी थे उनको को याद करवा दिया..
श्रमिका सुन्दर चित्रण किया है आपने इस रचना में!
मजदूर के यथार्थ का संवेदनशीलता के साथ चित्रण किया है आपने, शुभकामनायें!
behad sarthak post...
कंधे पर फावड़ा लिए चला जा रहा था
अनजान डगर पर निश्चित बेपनाह
चला जा रहा था इस समाज समुदाय की
गन्दी राजनीति से
बहुत दूर - वह मजदूर
sach hai...
राजनीति सीमित थी उसके लिए यही पर
नसीब था मात्र उसका - दो वक्त की रोटी
मिल जाये सुख चैन से ,
और चलता रहे किसी तरह से
परिवार का गुजर - बसर
ऐसा था ............ वह मजदूर !
jiska jeewan pariwaar ki mulbhut aawashktaaon ko pura karne men hi nikal jaata hai wo bechara rajneeti kya jaane.
राजनीति सीमित थी उसके लिए यही पर
नसीब था मात्र उसका - दो वक्त की रोटी
मिल जाये सुख चैन से ,
और चलता रहे किसी तरह से
परिवार का गुजर - बसर
ऐसा था ............ वह मजदूर ....
haan sanjay jee....kisi bhi majdoor ki yahi halat hai hamaare desh me...
मजदूर के पास वह वस्तु है जो धनवानों के पास भी नहीं होती- संतुष्टि ...जिसके सहारे वह अपनी ज़िंदगी की गाडी खींच ले जाता है.बहुत सुन्दर.
...एक मजदूर की आत्म-कथा सुन्दरता से परिभाषित..!!
एक भाई का बहन के लिये शब्द पुष्प किसी तोहफे से कम नहीं. मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
एस.एम.मासूम जी..
बहुत बहुत आभार आपका
@ विष्णु बैरागी जी..
जरूर ध्यान दूना विष्णु जी..
@ सुशील बाकलीवाल जी..
@ सुशील बाकलीवाल जी..
@ प्रीती जी..
@ सलिल वर्मा जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ Patali-The-Village
@ मानिक जी..
@ पूजा जी..
जरूर जरूर
@ निर्मला कपिला जी..
काम करे मजदूर खून पसीना खाये और बैंक भरें नेता। सही कहा आपने निर्मला जी..
@ डोरोथी जी..
@ अख़्तर खान 'अकेला' जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ....आप सबका धन्यवाद
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
मजदूर का बहुत सही चित्र खीचा है |महनत कश
इंसान की मजबूरी और बेबसी का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है |बधाई
आशा
इस दुनिया से बेख़बर बस दो वक्त की रोटी के लिए जीता वह...उसे पता भी नहीं होता कि उसके नाम कुछ लोगों ने जाने कितनी रोटियाँ सेंक ली हैं....
sach kaha hai..do waqt ki roti ki hi daud hai sab
very nice..Bhaiya.
majdoor ki santushti uske 2 wakt ki roti me hi hai
राजनीति सीमित थी उसके लिए यही पर
नसीब था मात्र उसका - दो वक्त की रोटी
मिल जाये सुख चैन से ,
और चलता रहे किसी तरह से
परिवार का गुजर - बसर
sahi kaha aapne....
jisko rozi-roti ki hi fikr hai vah jindagi ki baki sari rajneeti se door hi rahta hai....sundar abhivyakti...........!
@ कुंवर कुसुमेश जी..
@ संध्या जी..
एक मजदूर की जिंदगी में बस दो वक़्त की रोटी पाना उसके लिए सब कुछ होता है, उसे कहाँ फुर्सत राजनीती जैसे विषय पर सोचने की
बिलकुल सही फ़रमाया
@ मृदुला प्रधान जी..
बहुत बहुत आभार
@ हरकीरत ' हीर' जी..
@ रवि शंकर जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ....आप सबका धन्यवाद
लाजबाब पोस्ट
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
@ राज भाटिया जी..
@ शिखा वार्ष्णेय जी..
@ राजेश कुमार जी..
@ दीपाली आब जी..
@ डॉ मोनिका शर्मा जी..
@ भारतीय नागरिक जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
बहुत ही अद्भुत चित्रण प्रस्तुत किया है । संजय भाई बधाई ।
संजय भास्कर जी शुक्रिया........
रोटियाँ सेकता मजदूर है ,
फिर भी रोटियोँ से दूर है ,
खा जाते है राजनीति वाले ,
वह ना खाने को मजबूर है ।
ये चंद पँक्तियाँ आपकी कविता के लिए अर्पण है संजय भाई !
a different theme....nicely penned!
आज आपका ब्लॉग देखा.बहुत ही सुन्दर चित्रण ....अच्छा लगा यहाँ आना.वसन्तोत्सव की बधाईयाँ.
बहुत सटीक और सार्थक कविता। मजदूरों को यही हाल है दो जून की रोटी मिल जाय तो बहुत है।
बहुत ही अद्भुत चित्रण प्रस्तुत किया है । संजय भाई बधाई ।
मजदूर का बहुत सही चित्र खीचा है |महनत कश
इंसान की मजबूरी और बेबसी का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है |बधाई
संवेदनशील , सार्थक रचना .....गहन विचारों की सुंदर प्रस्तुति ...
satak ki bahut bahut badhai sanjay ji
bahut sundar rachna !
वह मजदूर जो सुबह बोली के लिए बाजार में आ कर खड़ा हो जाता है, कोई उसको ले जायेगा या नहीं ये उसको पता नहीं होता उसके सामने सिर्फ घर के चूल्हे में जलती आग और उस पर पकती रोटियों का सवाल होता है. शाम को कहीं चूल्हा ठंडा ही न रह जाए.
उस विषय को छुआ है जिसको छूना मुझे बहुत अच्छा लगा.
आप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं.
congrats congrats congrats for 104 comments. well done.
मज़दूर की एक ही परेशानी - आज शाम का या कल सुबह का दाना-पानी. बहुत अच्छी रचना.
संजय भाई ....बहुत अच्छी रचना.
मजदूर और किसान को दो वक्त की रोटी मिल जाये इसी मे उसकी पूरी दुनिया है..........
mazdur pr kavita achha hai
zamini haqikat ki rachna..
kalam yahin aakar to sarthak hoti hai .
they are foundation stone of society.
bahut sundar rachna... bhaskar ji... badhai..ho...
aapki rachnaa kal charchamanch par hogi... aapka abhaar... kal aap vahan aa kar apne vichar se anugrahit kariyega..
संजय जी , बहुत ही गहरा भाव लिये सुंदर कविता.......... एक मजदूर बेचारे को क्या चाहिए , दो वक्त कि रोटी ,मगर वह भी उसे बड़ी मुश्किल से नसीब होती है. सुंदर प्रस्तुति.
.
सैनिक शिक्षा सबके लिये
एक सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति ! सामाजिक सरोकार की कविता..
वह मजदूर
जिसमे उत्त्साह था अदम
सह चूका था जो हर सितम
रक्त नलिकाए भी दौड़ रही थी उसकी
पूरी चुस्ती फुर्ती के साथ
सुंदर दमदार प्रस्तुती !!!! बधाई !!!!!
great sanjay jiiii
सार्थक कविता.....बहुत ही सुन्दर चित्रण .
मजदूर के जीवन का सही चित्रण -
बधाई
@ प्रियंका राठौर जी
@ पी अस भाकुनी जी..
@ महेंदर वर्मा जी...
@ दिनेश रोहिला जी..
@ रूप चाँद जी..
@ अनीता जी..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ....आप सबका धन्यवाद
@ अनुप्रिया जी..
बहुत बहुत आभार आपका
@ मार्क रॉय जी..
बहुत बहुत आभार आपका
@ कैलाश शर्मा जी..
@ प्रियांकाभिलाशी जी..
@ अब्निश सिंह चौहान जी..
@ डोरोथी जी..
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
@ आशा जी..
@ प्रज्ञा जी..
@ मिनो बगिया जी..
@ सुमन अनुरागी जी..
@ पूनम जी..
@ सोनू भाई
आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत आभार ! इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !
निराला जी की रचना का स्मरण हो आया...
बहुत ही भावपूर्ण प्रभावशाली रचना रची है आपने...
बहुत बहुत आभार...
बहुत ही गहरा भाव लिये सुंदर कविता.......... एक मजदूर बेचारे को क्या चाहिए , दो वक्त कि रोटी ,मगर वह भी उसे बड़ी मुश्किल से नसीब होती है. सुंदर प्रस्तुति.
bahut khub kaha hai..........
vichaar sach main bahut badhia hai.
accha laga
सच बयाँ करती हुई कविता...
सुन्दर कविता
sundar kavita
सुन्दर रचना
129 प्रतिक्रियाएं !
...130 अब
वाह
इस् कविता के लिये आभार!
निराला जी की वह तोड़ती पत्थर की याद ताज़ा करवा दी आपने।
डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
“वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।
आप भी इस पावन कार्य में अपना सहयोग दें।
http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
बहुत सुन्दर!
संजय भाई ....बहुत अच्छी रचना.
मजदूर और किसान को दो वक्त की रोटी मिल जाये इसी मे उसकी पूरी दुनिया है..........
बहुत अच्छी रचना.
sir ji badhai
aapki mehat or dua rang lai
mayush an hona iss manjar se
jab sath ho har apna dil se
@ डॉ अशोक जी..
@ सौम्य जी
@ meenu khare ji.
@ अरुण रॉय जी..
@ संध्या जी..
@ ॐ kashyap ji..
आप सबका ह्रदय से आभारी हूँ , आपने मुझे प्रोत्साहित किया ...यूँ ही अपना मार्गदर्शन देते रहना ....आप सबका धन्यवाद
@ divya ji..
@ rekha shrivastav ji..
@ kunwar kusumesh ji
@ bushan ji..
@rajni mathotra ji..
@ alog mohan ji..
Thanks to aa of youuuuuuuuuu
@ सुरेन्द्र सिंह " झंझट " जी..
@ डॉ. नूतन डिमरी गैरोला जी..
@ उपेन्द्र ' उपेन ' जी..
@ ज़ाकिर अली जी..
@ कुमार पलाश जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ उषा राय जी..
@ देवेंदर शर्मा जी..
@ डॉ वेर्षा सिंह जी..
@ अनुपमा जी..
@ रंजना जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ बजरंग जी..
@ सुमन जी..
@ विजय जी..
@ रश्मी रविजा जी..
@ सुमीत सत्य जी..
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
@ काजल कुमार जी..
@ वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर
@ निलेश माथुर जी..
@ अमित जी..
@ शिव कुमार शिव जी..
आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत आभार ! इसी तरह समय समय पर हौसला अफज़ाई करते रहें ! धन्यवाद !
वाह संजय जी .... एक मजदूर के जीवन को रेखांकित किया है आपने ... बहुत लाजवाब लिखा है ..
बहुत सुन्दर रचना |
Priy Sanjay,
Tumhari rachnayen pasand aayee.Apni duniya mein hi duba rahta hun...Is rachna ko padhne ke baad mujhe Kavivar Nirala ki Wah Torti Patthar, Dekha Maine use Allahabad ke path par " wali kavita yaad aayee..
Yah hamari bhavnaayen hi hain jo hamein manushayatwa ki oar le jaati hain.Inhein zinda rakhna.Kabhi bhavna viheen na ho jaana.
Mera shubhasheervaad.
apka likhna ka andaaz bahut badiya haa or apke blog ki har rachna bahut badiya......mazza aata haa padne mein.........
होली शुभ हो ...
चला तो जा रहा है
वह मजदूर
पर कहाँ तक जा पायेगा
लौटेगा फिर
देखना उन्हीं नियति चक्रों को दुहराने
वह मजदूर
होकर मजबूर
बहुत सुन्दर रचना ! एक मजदूर की बेपरवाह संघर्षमय जीवन शैली को बहुत खूबसूरती के साथ शब्दों में बांधा है ! बहुत बहुत बधाई ! '
संजय भाई मजदूर के माध्यम से आपने पूरे मध्यम वर्ग को पेश किया है
बहुत सुन्दर, सटीक और सार्थक कविता। आपने मजदूर की व्यथा और सच्चाई को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोइया है! उम्दा प्रस्तुती!
प्रिय संजय भाष्कर जी ..बहुत ही यथार्थ और सुन्दर चित्रण मजदूर का किया आप ने इसके साथ लगी छवि ने ही सब कुछ कह दिया -निम्न पंक्तियाँ बेहद भावुक करने वाली
आभार
भ्रमर५
गन्दी राजनीति से
बहुत दूर - वह मजदूर
राजनीति सीमित थी उसके लिए यही पर
नसीब था मात्र उसका - दो वक्त की रोटी
मिल जाये सुख चैन से ,
और चलता रहे किसी तरह से
परिवार का गुजर - बसर
bahut sundar...sanjay ji
sidhe saadhe sabdon mein hriday se likhi gayi rachna
bahut khoob
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