03 जून 2010

सभी ब्लोगेर साथियों का तहे दिल से शुक्रिया .संजय रहेगा सदा कर्जदार आपका।


आनंदित है रोम रोम, पाकर प्यार आपका
थैंक्स, शुक्रिया, मेहरबानी, छोटे पड़ गए
कैसे करूँ प्रकट आभार आपका
नहीं उतरेगा कर्ज इस जन्म, मुझसे 
संजय रहेगा सदा कर्जदार आपका। 

मेरी पोस्ट पर क्या गरीब अपनी बेटी के शादी कर पायेगा 
बहुत ही ब्लोगेर मित्रो का प्रोत्साहन  मिला है    
कुछ दिन पहले मैंने पोस्टों का सैंकड़ा किया था, उसके पीछे भी आपका प्यार स्नेह था, और आज भी मेरी एक पोस्ट पर 100 टिप्पणियाँ आपके प्यार का अद्वितीय प्रदर्शन देखकर मन गदगद हो उठा। ऐसा लग रहा है, जैसे सेहरा में फूल खिल गए हों, और कोई घुमक्कड़ बादल मेरी प्यास बुझाने के लिए बरस गया हो।
कुछ टिप्पणियो को मैं आपकी सभी के सामने प्रदर्शित कर रह हूँ  |

Sadhana Vaid ने कहा…
आपकी चिंता सर्वथा विचारणीय है ! इसमें कोई दो राय नहीं कि महँगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है ! सोने की कीमतें आसमान पर चढ़ रही हैं ! इसके लिए ज़रूरी है कि शादी विवाह में सोने चाँदी व हीरे मोती की जगह फूलों के जेवर चढ़ाने के लिए युवा वर्ग स्वयं पहल करे और इस पर दृढता के साथ कायम रहे ! हाँ दहेज लोभियों के लिए अवश्य इस पहल से चिंता का कारण पैदा हो जाएगा लेकिन समाज में एक अच्छी परम्परा का सूत्रपात हो जाएगा ! अर्थ शास्त्र का सिद्धांत है जब माँग कम होगी तो कीमतें अपने आप कम हो जायेंगी ! अच्छी पोस्ट के लिए आभार !
बालिकाओं की जन्मदर कम रहने का मुख्य कारण ही उन की शादी में होने वाला भारी खर्च, बाद में ससुराल में होने वाली परेशानियाँ और लगातार किसी न किसी बहाने से उपहारों की मांग है। यह एक सामाजिक समस्या है जिसे कानून और सामाजिक आंदोलन दोनों के सहयोग से ही समाप्त किया जा सकता है।
M VERMA ने कहा…
विचारणीय और ज़ायज चिंता.
बाजारवादी संस्कृति के साये तले खुद के बिक जाने तक चैन नहीं है
'अदा'  दीदी  ने कहा-
bahut hi acchi soch ...ekdam sahi baat kahi hai...balikaaon ke liye dunia bhar ke project chal rahe hain lekin kya sachmuch mein iska faayda ladkiyon ya unke maa-baap tak pahunch raha hai...yah ek veichaarneey prashn hai...
bahut hi acchi post...
jenny shabnam ने कहा…
संजय जी,
आपका चिंतन प्रचलित धारणाओं के साथ चलते हुए समाज के हिसाब से बहुत सार्थक है| महंगाई अपने आप में समस्या है, ये अलग प्रश्न है| आपने महंगाई से लड़की की शादी को जोड़ा है| यूँ आपके विचार और चिंता जायज़ है, परन्तु क्या आपको नहीं लगता कि लड़की या स्त्री को समाज में पुरुष के सामान अधिकार होने चाहिए? लड़की की शादी आख़िर क्यों इतनी बड़ी समस्या है? सरकार चाहे कितने भी क़ानून बनाये या उत्थान केलिए सहायता उपलब्ध कराये, क्या ये समाज का कर्तव्य नहीं कि स्त्री को पुरुष के बराबर माना जाये? विवाह केलिए क्यों लड़की का पिता हीं परेशान हो या दहेज़ के नाम पर महंगाई को कारण माना जाये? महंगाई की मार हर इंसान झेल रहा| लेकिन अगर युवा वर्ग अपनी सोच बदलें तो मुमकिन है कि विवाह की प्रचलित प्रथा ख़त्म हो, और लड़की का बाप बेचारा न रह जाये| आडम्बर और परंपरा के नाम पर अंधाधुन खर्च कहाँ से मुनासिब है? अगर दहेज़ प्रथा और पारंपरिक विवाह प्रक्रिया को ख़त्म किया जाए तो हर ग़रीब की बेटी की शादी स्वयं हो जाएगी| सामजिक सोच में परिवर्तन की ज़रूरत है| सार्थक लेखन, शुभकामनाएं!
Baat kewal shadi ki nahee hai..shiksha tatha vaidykeey suvidhaye pahlen kram pe honi chahiyen...jab tak ladikayan swawlambi nahi hoti, janjagruti sambhav nahi..
VK Shrotryia ने कहा…
sanjay ji
We dont need to blame the government for everything that it provides..... I am not talking as a representative of the government, but for all good reasons for people themselves. Education is more important an issue. The wedding of a daughter or son is an issue to be tackled at family level or personal level. We need to empower women and educate them so that the issue of getting them married is taken care off by themselves. A recent example is of a girl who exposed dowry demanding family in Mumbai. This is what education and empowerment is all about. Why do we need to depend on government, we should refuse such schemes of the government and ask them to help the cause of women education....
We dont need to live on the mercy of the government. I shall be happy to have comments of people on my thinking.
मीनाक्षी ने कहा…
ग़रीब की बेटी को शिक्षा ही मिल जाए तो बहुत बड़ी बात होगी..बेटी आत्मनिर्भर होगी तो माँ बाप निश्चिन्त होगें. जहाँ तक महँग़ाई का सवाल है उसने तो समाज के हर तबके को परेशान कर दिया है
प्रवीण जाखड़ ने कहा…  
सोचते कहां हैं लोग भास्कर साहब। आप, हम जैसे लोग जरूर कभी उस दर्द को महसूस करते हुए कोई कदम उठा लें, क्योंकि हम फिर भी गांव और माटी से जुड़े लोगों में हैं।
ज्वलंत मुद्दा, सुंदर विचार, उत्कृष्ट प्रयास।
आप धन्यवाद के पात्र हैं, ऐसे ही मुद्दे उठाते रहें।

 डॉ टी एस दराल ने कहा…
क्या बिना सोने के शादी नहीं हो सकती ?
हो सकती है , लेकिन इसके लिए हमें अपना नजरिया बदलना पड़ेगा ।
दहेज़ जैसी कुरूतियों के विरुद्ध लड़ना पड़ेगा ।
आपनी चिंता जायज है पर इसका समाधान बहुत मुश्किल है .....देहाती गावो की हालत तो बहुत ही बदतर है ....कल की तरह यह भी आपकी विचारणीय सोच का परिणाम है जो ...ऐसा चिंतन कर ये सब लिखते हो ,,,,आपको और आपकी सोच दोनों को सदर नमन

संजय जी, पोस्ट अच्छी है, लेकिन क्या लड़कियों की शादी ही एकमात्र चिन्ता है? इस विवाह-चिन्ता की जगह यदि हम बेटियों को पढा-लिखा के योग्य बनाने और अपने पैरों पर खड़ा करने की चिन्ता करें तो फिर शादी कोई चिन्ता ही नहीं रह जायेगी. रही बात शासकीय योजनाओं की, तो निश्चित रूप से सरकार ने बेटियों को तमाम सुविधाएं मुहैया कराई हैं, स्कूल शिक्षा में यूनिफ़ॉर्म, किताबें और साइकिलें तक सरकार दे रही है, और ये सामान उन तक पहुंच भी रहा है. लाड़ली योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्र की बेटियों को उनकी शिक्षा पूरी होने तक स्कॉलरशिप दी जा रही है.कम से कम मध्य-प्रदेश में तो ये हो रहा है. हां कहीं कहीं भ्रष्ट अधिकारी अपना फ़र्ज़ मुस्तैदी से नहीं निभा रहे. तो ऐसा तो हर विभाग में है. आवाज़ इस भ्रष्टाचार के लिये उठानी ज़रूरी है, सोने के बढते दामों के लिये नहीं.
pukhraaj ने कहा…  
gar hamaare desh ke neta jinki"kamaayi huyi daulat" million ke aankde ko paar karti jaa rahi hai , apni us daulat se 1 gm sona har gareeb ladki ko de den to har gareeb kanya ka vivaah sambhav hi nahi hoga balki uski jindgi khushhaal ho jaayegi .. bas samasya ek hi hai , "SHURUAAT KAREGA KAUN " ...?
भुवन भास्कर ने कहा…  
दहेज के खिलाफ चलाए गए सभी आंदोलनों में सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि ये सामाज के माध्यम से व्यक्ति को साधने के सिद्धांत पर चलाए गए हैं। नतीजा यह होता है कि आंदोलन का मुखिया ख़ुद मौका पड़ने पर दहेज लोभी बन जाता है। दहेज के विरोध का आंदोलन दरअसल व्यक्ति से समाज की ओर चलाए जाने की जरूरत है। तभी इसका कोई स्थाई समाधान संभव है। दूसरी बात, दहेज को आर्थिक भ्रष्टाचार के बढ़ते चलन से भी जोड़ कर देखा जाना चाहिए। कम से कम समय और मेहनत कर ज़्यादा से ज़्यादा धन जमा करने की बढ़ती भूख इसकी जड़ में है, इसलिए इसे ख़त्म करने के लिए भ्रष्टाचार की जड़ों पर भी चोट करना ज़रूरी है।
अल्पना वर्मा ने कहा…  
aap ne sahi chinta vyakt ki hai...
lekin yah sarkar ke nahin khud samaaj kee bhi jimmedari honi chaheeye..
kahan tak har baat ke liye Sarkaar ki taraf bahagte rahenge?
Ladake wale pahal karen to behtar!

बेटियां... पिछले लगभग आधे घन्टे से प्रयास कर रहा हूं की इस पोस्ट पर टिप्पणी में क्या लिखूं। अपनी भी बहन की शादी के लिए पिता जी की स्थिति को देख रहा हूं... और अपनें आप को भी देख रहा हूं। 
शायद बाज़ार हावी है, हर रीति पर... हर रस्म और हर धर्म पर। शब्द कम हैं और मन में बहुत कुछ आ रहा है... 
हमेशा से यही रीति चली आ रही है...

शरद कोकास ने कहा… 
विवाह संस्था का आरम्भ परिवार को व्यवस्थित करने के लिये हुआ था । इस प्रक्रिया को प्रदर्शन का बायस बना दिया गया । ग़रीब इस प्रदर्शन की होड में अपनी क्षमता से अधिक खर्च करने लगा ।उसमे दहेज जैसी कुरीतियाँ जुड़ गईं सरकार ने इस समस्या के मूल में ध्यान देने के बजाय इसका राजनीतिक लाभ लेना शुरू किया । इस तरह यह समस्या अब एक परम्परा बन गई है और इसका समाधान सिर्फ पढ़े-लिखे और प्रगतिशील सोच के युवा ही कर सकते हैं यह प्रण करके कि वे अपने विवाह को अत्यंत सादे ढंग से करेंगे कोई अनावश्यक खर्च नहीं करेंगे और दहेज या उपहारों का बहिष्कार करेंगे ।
सवाल यह है कि क्या ऐसे युवा हैं ?????????
Main kahti hu kya har baat k liye sarkar ka ya auro ka hi muh dekhte rahenge...kya yuva varg iske liye dahez na lene ki pratigya karke aage nahi aa sakta? har koi dusre ki ungli pakad k peechhe chalna chaahta hai? koi aage aa kar ye kyu nahi kahta ki ham bina dahej k hi shadi karenge? aap bhi aaj usi varg me khade hai. kya aap pratigya kar sakte hai? kya aap apne parents ko is baat k liye mana sakte hai ki bina dahej k vo apne baccho ki apne ladko ki shadi kare? kahin se to shuruaat kijiye.
Aaj aap shuruaat karenge tabhi to kal jab aapki behen/betiya byahi jayengi to aap vinamr nivedan to karne ke kam se kam hakdar honge ki aap apni behen/betiyo ki bina dahej k shadi karana chaahte hain.

Shah Nawaz ने कहा… 
बहुत ही ज्वलंत मुद्दा उठाया है आपने भास्कर साहब. सरकार सिर्फ आंकड़े भरने के लिए कार्य करती है, अगर जनता के लिए करती तो उसका असर थोडा ही सही, परन्तु दिखाई अवश्य ही देता.
मेरे विचार से दो बातें इस विषय में अवश्य होनी चाहिए. एक तो दहेज़ पर पूर्णत: प्रतिबन्ध लग्न चाहिए, दूसरी बात यह कि विवाह समारोह में खाने देने पर भी पूर्णत: प्रतिबन्ध लगना चाहिए ताकि गरीब से गरीब भी अपनी बेटियों का विवाह कर सके तथा साथ ही साथ फ़िज़ूल खर्ची तथा अनावश्यक दिखावे पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सके.

Arvind ने कहा… 
bahut hi sahi mudda uthaayaa hai aapne. vaise sedh ki nakammi sarakar se ummid karanaa bevakufi hai.....han yadi yuva varg aage aaye our yuvak pran le ki dahej nahi lenge our ladkiya bhi sapath khaaye ki dahej dekar shaadi nahi karen to revolution aa jaayega. main sochta hun. aisa ho sakta hai.........i have taken the oath that i will never take dowry and never negotiat for that in my life......is there anybody jo mera saath de.... but i m sure log aayenge.......
सुलभ § Sulabh ने कहा…  
संजय जी आपने विचारणीय मुद्दे की और इशारा किया है.
यहाँ दो-तीन चीज़ें आपस में उलझी हुई है. सरकारी घोषणा और उनका जमीन तक न पहुंचना,
गरीब लड़की की शादी से पहले और जो बुनयादी जरुरत उसे चाहिए, उसको प्राथमिक लक्ष्य बनाना. परन्तु लालफीताशाही है. सामाजिक सुधार के लिए युवाओं में हिम्मत का अभाव 
बाज़ार के खिलाडयों और भ्रष्टाचारों के कारण सोना/आभूषण ग़रीब परिवारों के लिए अत्यंत मुश्किल हो गया है. एक तरफ सामान्य चीज़े भी मह्नागी होती जा रही है और ऐसे में रस्मो रिवाज के महंगे चीज़ भी आसमान की तरफ भाग रहे हैं.
सरकार को चाहिए की वे इस ओर ज्यादा ध्यान दें जैसे निशुल्क कुशल शिक्षा व्यवस्था और सस्ते वोकेशनल ट्रेनिंग से स्थितियों में सुधार हो सकती है. हमारे आपके लिए चुनौती है "दिखावे के समाज को ठेंगा दिखाना" जो की व्यापक जनजागरण से संभव है. 
स्थिति वास्तव में चिंताजनक है.बाजारी ताकतों के आगे निर्धन असहाय है.लेकिन इस चकाचौंध में कौन इस बात की परवाह करता है. आपके सरोकार प्रशंशनीय हैं.

Mrs. Asha Joglekar ने कहा… 
Wicharneey mudda hai . iska ek hee samadhan hai ki har ma bap betiyon ki shadee ki chinta chod unke padhaee ki chinta karen aur apne pairon par khada hone ki shiksha den.
Mukesh Kumar Sinha ने कहा…  
sarkar ko koshne se nahi hoga........karrti to hai.....kuchh achhhi yojnayen bhi aati hai........bas janta ko jagne ki jarurat hai........aur sayad wo din aane wala hai.....
aapne ek jwalant mudde pe likha hai

आपने विचारनीय लेख दिया है ,क्षमा चाहुगा ये कहने के लिए की हर माँ - बाप अपनी बेटी की शादी करता है और उसका पहला खवाब ये ही होता है की बिटिया की शादी हो जो अपनी हैसियत के अनुसार करता है , मगर मेरा एक सवाल है की क्या माता -पिता अपनी संतान की उत्पति किसी के भरोसे करता है ? शायद वो अपने सग्गे भाई के भरोसे भी अनहि रहता तो फिर सर्कार के भरोसे वो क्यूँ रहे ? सब का अपना भाग्य होता है जिसे जितना लिखा हो उतना ही प्राप्त होगा !
आभार
दीपक 'मशाल' ने कहा…  
साधना वैद्य जी, क्षमा जी और वंदना जी ने पहले ही बात को स्पष्ट कर दिया है.. जब बात शादी पर पहुँचती है तो युवाओं को चाहिए कि दहेज़ का सख्ती से विरोध करें.. भले ही इसके लिए उन्हें अपने परिवार का विरोध करना पड़े. उम्मीद है संजय तुम भी समर्थन करोगे इस बात का(सिर्फ कागजी तौर पर नहीं बल्कि अमल में.. ;)
Yogesh ने कहा…  
सब से पहले तो दहेज प्रथा बंद होनी चाहिए.
उसके लिए दोनों लड़के और लड़की वालो को संकल्प लेना होगा. 
लड़की वाले दहेज देने से मना करें और लड़के वाले दहेज लेने से.
अगर दहेज खतम हो जायेगा तो शायद कुछ मददमिल पाएगी बेटी की शादी में.
Arun c roy ने कहा-
सहज सरोकार का आलेख... सरकार करना तो चाहती है लेकिन सिस्टम इतना जंग खा चूका है कि नीतियां जमीन तक नहीं पहुँच पाती..
देश कदम कदम पर समस्याओं से जूझ रहा है... इससे नई रौशनी चाहिए... इच्छा शक्ति वाले नए लोग जब सिस्टम में आयेंगे तभी कुछ हो सकता है... प्रशंशनीय प्रस्तुति...
Dhiraj Shah ने कहा…  
आज गरीबो की शादी को लोगो ने मजाक बना दिया है , उसमे सरकारी अमला भी पीछे नही है पैसे तो उपर से चलते तो है मगर आम लोगो के पास नही आ पाता है आजे के काला बाजारी ने गरीबो का जीना मुहाल कर दिया है।
Sid ने कहा…  
Mujhe nahi lagta ki sirf garibo ki betiyo ko byahna hi humara uddeshya hona chahiye. Asal uddeshya to garibo ko rojgar dilwa kar unhe garibi se mukt karne ka hona chahiye
 कुछ टिप्पणियो को मैं आपकी सभी के सामने प्रदर्शित कर दी है
 और अन्य नाम है 
न्यवाद ,
Jai kumar jha ji @ Rajeev ji @ Rasimprabha  ji @ Gaurtalab ji @ Uday ji @ Ananad pandy ji @ Mdhav @ Karan ji @ Bhushan ji @ Sangeeta  ji @ Papa ji @ Tapaswani anand ji @ शमीम जी  @ दिगम्बर नासवा जी @ Rajnish parihar ji @ hem pandy ji @ Amin ji @ Babji ji @ Ash ji @ Kulwant ji @ Swati ji @ Chander soni ji @  Bal Mukund peda ji @ Acharya ji @ Chakresh bhai @ Alok ji @ Harshita didi @ karan ji @ Amit ji @ Ajeet ji @ Manish ji @ Sanjay ji @ Firdaus khan ji @ Sneh ki pati ji @ Anter sohil ji @ Sumil ji @ Rachna ji @ Racna didi @ jakir ali ji @ Raj kumar ji @ Parveen ji @ Tilak ji @ Meer bhav @ Benami ji @ Never hang the boot ji @ Arun ji @ Girish pankaj ji 
आप सभी का दिल से शुक्रिया 
और अंत में उन सभी साथियों का शुक्रिया जिनके नाम मैं यहाँ भूल गया  हूँ. मैं आप सभी का  दिल से आभारी हूँ और आशा करता  हूँ आप अपना आशीर्वाद बनाये रखेंगे.
और ये ब्लॉग जो अब मेरी एक जरुरत ही नहीं ज़िंदगी बन गया है
सभी ब्लोगेर साथियों का तहे दिल से शुक्रिया  

.प्रस्तुतकर्ता .. 
..Sanjay Bhaskar...