तन्हाई में जब मैं अकेला होता हूँ,
तुम पास आकर दबे पाँव चूम कर मेरे गालों को,
मुझे चौंका देती हो, मैं ठगा सा, तुम्हें निहारता हूँ,
तुम्हारी बाहों में, मदहोश हो कर खो जाता हूँ.
सोच रहा हूँ..... कि अब की बार तुम आओगी,
तो नापूंगा तुम्हारे प्यार की गहराई को.... आखिर कहाँ खो जाता है
मेरा सारा दुःख और गुस्सा ? पाकर साथ तुम्हारा,
भूल जाता हूँ मैं अपना सारा दर्द देख कर तुम्हारी मुस्कान और बदमाशियां.... मैं जी उठता हूँ, जब तुम,
लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में,
कहती हो....... मेरे बहुत करीब आकर कि रहेंगे हम साथ हरदम...हमेशा....
महफूज़ भाई तो गायब है चलो हम ही उनकी एक पुरानी रचना सभी ब्लोगर मित्रो को पढवाते है
महफूज़ अली जी की कलम से ये पंक्तिया आप तक
पहुंचा रहे है
संजय भास्कर