26 नवंबर 2010

मेरी मंजिल.................संजय भास्कर


यहाँ हर किसी कि अपनी मंजिल अपने रस्ते 
कोई कुछ नहीं करता किसी के वास्ते ,
हर कोई रहता अपने ऐशो आराम में ,
उन्हें कुछ नहीं दिखता फायदा दया के काम में ,
मैं दुसरो का भला करे कि सोचता रहूँ ,
पर मेरे पास दान के लिए कुछ भी नहीं 
मैं किसी को क्या कहूं ,
मानव के दुखों को देखकर रोता हूँ ,
अकेले बैठ उन्हें , उनके दुखों से छुटकारा दिलाने कि सोचता हूँ ,
पर यु खाली सोचने से कुछ बनता नहीं ,
गरीबो के दुखों को दूर करने के लिए धन चाहिए ,
पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,
ताकि दीन दुखियो के लिए कुछ कर सकूं ,
मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी || 
चित्र :- ( गूगल देवता से साभार  )
 

..............संजय कुमार भास्कर

93 टिप्‍पणियां:

Deepak Saini ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Deepak Saini ने कहा…

बहुत अच्छे संजय भाई बेहतरीन सोच
अगर हम दुसरो के लिए सोचते है तो भी बहुत बडी बात है

Deepak Saini ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Deepak Saini ने कहा…

बहुत अच्छे संजय भाई बेहतरीन सोच
अगर हम दुसरो के लिए सोचते है तो भी बहुत बडी बात है

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

कोई बात नहीं, चित्र तो कहीं से भी हो, काव्य में जान डाल देते हैं।
बहुत खूब।

mark rai ने कहा…

मानव के दुखों को देखकर रोता हूँ ,
अकेले बैठ उन्हें , उनके दुखों से छुटकारा दिलाने कि सोचता हूँ....
BAHUT HI ACHCHI POST THANKS...

सदा ने कहा…

भावमय करती शब्‍द रचना ।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

"....इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||"

एक एक शब्द में सार्थक सन्देश और विचार बहुत ही अच्छे.

स्वावलंबन सबसे बड़ी चीज़ है; जो आत्मविश्वास से ही आ सकता है.

S.M.Masoom ने कहा…

गरीबो के दुखों को दूर करने के लिए धन चाहिए ,
पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,
ताकि दीन दुखियो के लिए कुछ कर सकूं ,
मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||

एक बहतरीन सोंच है

Unknown ने कहा…

क्या बात है..बहुत खूब....बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

Unknown ने कहा…

मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||

बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

Udan Tashtari ने कहा…

इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी

-सही प्रण!!

केवल राम ने कहा…

हर कोई रहता अपने ऐशो आराम में ,
उन्हें कुछ नहीं दिखता फायदा दया के काम में ,
बिलकुल सही स्थिति को वयान किया है ...स्वार्थ इंसान की सबे बड़ी फितरत है ...और जो दूसरों के बारे में सोचता है वह स्वार्थी नहीं हो सकता ....बहुत खूब

naresh singh ने कहा…

कठिन राह चुनी है आपने भी | भगवान आप पर कृपा बनाए रखे |

Asha Lata Saxena ने कहा…

सुंदर भाव और अच्छी कविता |बधाई
आशा

Shekhar Kumawat ने कहा…

इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी
BAS YAHI SOCH CHAHIYE SABHI KO

vandana gupta ने कहा…

"....इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||"

सार्थक संदेश देती सुन्दर रचना मन की पीडा दर्शाती है।

POOJA... ने कहा…

बहुत ख़ूब भैया... काश ये सोच हर इंसान की हो जाए...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सच है संजय जी ... हर किसी को कोई न कोई कमी है ... सबके अपने अपने गम हैं ... अपने अपने रस्ते हैं ... बहुत सार्थक लिखा है ...

arvind ने कहा…

behtareen soch...achhi post.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

लगे रहिये ...आपकी सोच कामयाब हो शुभकामनायें

Kunwar Kusumesh ने कहा…

मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी |

अच्छी सोंच,बेहतरीन कविता

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ दीपक भाई
दुसरो के लिए सोचना तो भी बहुत बडी बात है

@ नीरज जाट जी
बिलकुल सही कहा आपने नीरज भाई

@ मार्क रॉय जी..
@ सदा जी..

@ यशवन्त जी..
स्वावलंबन सबसे बड़ी चीज़ है बिलकुल सही कहा आपने

@ एस.एम.मासूम जी..
बहुत बहुत धन्यवाद
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ ॐ जी..
@ समीर लाल जी..

@ केवल राम जी.
स्वार्थ इंसान की सबे बड़ी फितरत है ...और जो दूसरों के बारे में सोचता है वह स्वार्थी नहीं हो सकता ....बहुत खूब

@ नरेश सिह राठौड़ जी..
@ आशा जी..
@ शेखर कुमावत जी..
@ वन्दना जी..

आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत
धन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

M VERMA ने कहा…

इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||
यकीनन बनना ही होगा

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ पूजा बहन
बहुत बहुत शुक्रिया

@ दिगम्बर नासवा जी..
सबके अपने अपने गम हैं ... अपने अपने रस्ते हैं
आज के समय में तो ऐसा ही है

@ अरविन्द जी..
@ गीता स्वरुप ( गीत ) जी..
बस आपका आशीर्वाद होना चाहिए

आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत
धन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

अन्तर सोहिल ने कहा…

बेहतरीन पंक्तियां
बेहतरीन विचार
बेहतरीन अभिव्यक्ति

प्रणाम स्वीकार करें

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

अच्छे भाव है भास्कर जी रचना मे !

Unknown ने कहा…

hamari dua aapke saath hai...
aap swaablambi bano

नीलांश ने कहा…

मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी


bikul satya bola aapne sanjay bhai..
swablambi bankar hi ham log sewa kar sakte hain....

Arvind Jangid ने कहा…

एक विचार मात्र में ही वो शक्ति है जो दिलों को बदल सकती है...........सुन्दर रचना के लिए आपका धन्यवाद.

Aruna Kapoor ने कहा…

किसी को क्या कहूं ,
मानव के दुखों को देखकर रोता हूँ ,
अकेले बैठ उन्हें , उनके दुखों से छुटकारा दिलाने कि सोचता हूँ ,

sanjy ji!...aap ke vichaar bahut hi unada hai!...bahut achchha laga padhh kar!

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बड़ी खूबसूरती से दिल के भावों को शब्दों में ढाला है.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

नेक विचार हैं । पहले पढ़ लो , फिर नेकी करने के बहुत अवसर आयेंगे ।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सार्थक पोस्ट.

रामराम.

Bharat Bhushan ने कहा…

दूसरे के दुख में रोना बहुत ही बुरा आइडिया है. किसी की मदद करके हँसना बेहतर है.

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,
ताकि दीन दुखियो के लिए कुछ कर सकूं ,
मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी |

सुंदर भावों के साथ सुंदर रचना...बधाई

Unknown ने कहा…

wah ....sanjay kya baat hai lajwaab likha hai
Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.

regards
Preeti

honesty project democracy ने कहा…

सार्थक और सराहनीय विचार......

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

मानव के दुखों को देखकर रोता हूँ,
अकेले बैठ उन्हें, उनके दुखों से छुटकारा दिलाने कि सोचता हूँ,

मानवीय संवेदनाअें को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करती एक सुकोमल कविता।
भास्कर जी, सुंदर कविता लिखी है आपने।

निर्मला कपिला ने कहा…

पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,
ताकि दीन दुखियो के लिए कुछ कर सकूं ,
मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||
और मेरी कामना है कि तुम इतना पढो कि अपनी अभिलाशा पूरी कर सको। ये दया भाव यूँ ही बना रहे। बहुत अच्छे भाव हैं बधाई आशीर्वाद।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

shi kha dost duniya ke logon ko zra bhi furst nhin or jinhe furst he bhav he unke paas dolt nhin . akhtar khan akela kota rajsthan

PRIYANKA RATHORE ने कहा…

meri eshver se prarthana hai ki aapki sabhi kamnaye puri ho....god bless u...

कडुवासच ने कहा…

... bahut sundar ... behatreen ... badhaai !!!

प्रकाश पंकज | Prakash Pankaj ने कहा…

पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,

.... aur yahi maksad badal jaate hain jab naukari aur ghar ke bojh tale dab jate hain hum ... :(

Dorothy ने कहा…

दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ कुंवर कुसुमेश जी..
बहुत बहुत धन्यवाद

@ फ़िरदौस ख़ान जी..
@ ऍम वर्मा जी..
ज़रूर बनेगे वर्मा जी..

@ अन्तर सोहिल जी..
@ पी.सी.गोदियाल जी..
@ आमीन जी..
आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत
धन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ अभिषेक जी.

@ अरविन्द जांगिड जी..
एक विचार मात्र में ही वो शक्ति है जो दिलों को बदल सकती है.. बिलकुल सही कहा आपने अरविन्द जी..

@ डा. अरुणा कपूरजी..
ये सब आपका सभी का ही आशीर्वाद है

@ संजय कुमार चौरसिया जी..

@ डॉ टी एस दराल जी..
ऐसे अवसर भी आने चाहिए
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ ताऊ रामपुरिया जी..
राम राम जी..

@ भूषण जी..
बिलकुल सही कहा आपने

@ वीना जी.
धन्यवाद

@ प्रीती जी
धन्यवाद
@ जय कुमार झा जी..
@ महेंदर वर्मा जी..
आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत
धन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

ASHOK BAJAJ ने कहा…

हर कोई रहता अपने ऐशो आराम में ,
उन्हें कुछ नहीं दिखता फायदा दया के काम में ,



टिप्पणी पाने में तो काफी अमीर लगतें है .अच्छी कविता .बधाई !

Girish Kumar Billore ने कहा…

वाह
क्या बात है

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||

kaaaaaash sab aisa sochte!!

pyari rachna........bhaskar jee

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

sundar kavita.. nai soch ke saath.. behatreen ..

मंजुला ने कहा…

बहुत बेहतरीन रचना .....हर युवा आपके जैसा सोचें तो हिंदुस्तान की तस्वीर बदल जाये ....बहुत बढिया संजू ......खुश रही ऐसा ही लिखते रहो

अनुपमा पाठक ने कहा…

औरों के दुःख से रोने वाला हृदय हो तो दुःख दूर करने के साधन भी उपलब्ध हो जाते हैं!
शुभकामनाएँ!

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

भावों का अभाव नहीं
अच्‍छाई का है राज यही
आओ अमेरिका चलें

कैनन का एस एक्‍स 210 : खरीद लूं क्‍या (अविनाश वाचस्‍पति गोवा में)

विश्‍व सिनेमा में स्त्रियों का नया अवतार : गोवा से अजित राय

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ----- अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Sanjay ji .. foto lajawaab hai bahut ..kahaan se dhoondh kar laate ho ...

amar jeet ने कहा…

बहुत अच्छी सुंदर रचना अंतिम दो लाइने सर्वश्रेष्ठ ..........

बंटी "द मास्टर स्ट्रोक" ने कहा…

ताऊ पहेली का सही जवाब :
http://chorikablog.blogspot.com/2010/11/blog-post_27.html

priyankaabhilaashi ने कहा…

नेक विचार..!!

kunwarji's ने कहा…

behtareen sanjay bhai...
aapki post par aane ka ek faayda or ye huaa k pura blog pariwaar yaha mil gaya ek saath,,,,

iske liye bhi dhanyawaad hai ji...

kunwar ji,

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपका स्वाबलम्बन आपको आत्मिक सुख पहुँचाये, हार्दिक शुभकामनायें।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

मैं यह महसूस करता हूं कि हमें भी समाज को कुछ वापस करना चाहिये..

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति. सही कहा आपने .

Alokita Gupta ने कहा…

bahut hin prerak rachna

बेनामी ने कहा…

संजय आपकी सोच बहुत अच्छी है !आप बड़ा और तेजस्वी बनना है क्योंकि आपका नाम भास्कर है ! शुभकामनायें !

रचना दीक्षित ने कहा…

अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया.खूबसूरत अभिव्यक्ति.

Rewa Tibrewal ने कहा…

bahut acchi sooch hai apki......acchi rachna...................

mere blog par is baar padhiye.......स्त्री की कहानी

Amit K Sagar ने कहा…

अपनी ही तरह की इक़ विशेष-अलहदा रचना.
---
कुछ ग़मों के दीये

sumegha ने कहा…

sanjay,

u visited my blog a while ago and left ur greetings and good wishes. many thanks and hope u will keep visiting. meanwhile, i am visitng ur blog and liked reading ur posts. many thanks for coming in the loop. i don't know how to type the comment in Hindia that's why typing in English. once again sending u loads of good wishes. re ur desire to work for others, i have been doing the same for ages but it always has been neki kar darya mein daal belief. nobody is ever satisfied with what u do fro them and in return i have received threats, abuse and what not. but still i did what i did because that is part of my nature and of almost majority of people.
sumegha

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ निर्मला कपिला जी..
ये दया भाव यूँ ही बना रहे। बहुत अच्छे भाव हैं बधाई आशीर्वाद।
ये सब हमेशा बना रहेगा माँ जी..

@ अख्तर खान अकेला जी..
@ प्रियंका राठौर जी..
@ उदय जी..
@ प्रकाश पंकज जी..
@ डोरोथी.जी..
@ अशोक बजाज जी..
@ गिरीश बिलोरे जी..
@ मुकेश सिन्हा जी..
आप सभी का ह्र्दय से बहुत बहुत
धन्यवाद,
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ अरुण चन्द्र रॉय जी..
@ मंजुला जी..
@ अनुपमा पाठक जी..
@ अविनाश वाचस्पति जी..
@ वंदना जी..
. बहुत-बहुत धन्यवाद...
@ दिगम्बर नासवा जी..
@ अमरजीत जी..
आभार आपका
@ बंटी चोर
@ प्रियांकभिलाशी जी..

बहुत-बहुत धन्यवाद... बस एक छोटी-सी कोशिश की है... ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ कुंवर जी..
बहुत-बहुत धन्यवाद...
@ प्रवीण पाण्डेय जी..
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen जी..
@ उपेन्द्र जी..
@ अलोकिता जी..
@ उषा राय जी..
@ रचना दीक्षित जी..
@ रेवा जी..
@ अमित सागर जी..
बहुत-बहुत धन्यवाद... बस एक छोटी-सी कोशिश की है... ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ सुमेघा जी..
बहुत-बहुत धन्यवाद...
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
संजय भास्कर

रविंद्र "रवी" ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना!

रविंद्र "रवी" ने कहा…

संजयजी! आपकी हर रचना काबिल-ये-तारीफ है!

The Serious Comedy Show. ने कहा…

insaaniyat ke naate apanee khudee se pyaar.
tumko bhee beshumaar hai,mujhko bhee beshumaar.

satya likhaa.

The Serious Comedy Show. ने कहा…

insaaniyat ke naate apanee khudee se pyaar.
tumko bhee beshumaar hai,mujhko bhee beshumaar.

satya likhaa.

Archana Chaoji ने कहा…

तुम बनोगे स्वावलम्बी और होगे सफ़ल ये मेरा विश्वास है ...
"आदत हो जिन्हे मुस्कुराने" की भला दुख कब रहा उनके पास है ?....

Aparajita ने कहा…

गरीबो के दुखों को दूर करने के लिए धन चाहिए
very true lines..... Excellent poem.

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचनाा ।

Unknown ने कहा…

अच्छी सोंच,बेहतरीन कविता

Kunwar Kusumesh ने कहा…

मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी |

अच्छी सोंच,बेहतरीन कविता

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ अरविन्द मोहन जी..
@ रविन्द्र रवि जी..
@ हर्षवर्धन जी..
@ अर्चना जी..
@ अपराजिता जी..
@ मिथलेश जी..
@ पवन जी..
@ कुंवर जी..

आपने ब्लॉग पर आकार अपनी राय और प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
उम्मीद है आप सभी हमेशा ही उत्साहवर्धन करते रहेंगे
बहुत बहुत धन्यवाद

दीपक बाबा ने कहा…

लोक सेवा की भावना से जो मन में उथल उथल है - वह सपना पूर्ण होगा - क्योंकि ये एक स्वार्थी की भावना नहीं है.


आमीन.

***Punam*** ने कहा…

आपकी रचनाएँ कुछ कहती है आम आदमी से....

अपने दायरे से बाहर सोचना सबके बस की बात नहीं है....

इस सोच के लिए भी बधाई.....

एस एम् मासूम ने कहा…

पढता हूँ इसी मकसद से कि कुछ बन सकूं ,
ताकि दीन दुखियो के लिए कुछ कर सकूं ,
मुझे दुःख कि बीमारी लगती है निकम्मी ,
इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||

Minakshi Pant ने कहा…

.सुन्दर विचार

संजय भास्‍कर ने कहा…

@ सुमन जी..
@ दीपक बाबा जी..
@ एस.एम.मासूम जी..
@ मीनाक्षी पन्त जी..
आपने ब्लॉग पर आकार अपनी राय और प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
उम्मीद है आप सभी हमेशा ही उत्साहवर्धन करते रहेंगे
बहुत बहुत धन्यवाद

Rahul Singh ने कहा…

हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं, मंजिल जल्‍द मिले आपको.

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…

badhaai ho.yuhi aage badhate raho...........

राज चौहान ने कहा…

इसीलिए बनना चाहता हूँ स्वावलंबी ||
यकीनन बनना ही होगा