जवान बेटी को बाप ने कहा
जाना होगा अब तुम्हे अपने घर ,
बी. ए की करनी वही पढाई
ढूंढ़ लिया तेरे लायक वर ,
अब तक तुम हमारी थी
पर अब यहाँ से जाना होगा
जुदा होकर हमसे
नया घर बसाना होगा ,
बेटी ने बहु बनकर बी.ए वाली बात दोहरायी
सुनकर उसकी बातें सास गुर्राई
अगर आगे ही पढना था
तो पढ़ती ' अपने घर '
बहु है हमारी अब सेवा कर ,
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर |
........संजय
95 टिप्पणियां:
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
... bahut khoob !
bahut badiya bhaskarji
इस प्रश्न का उत्तर शायद ही कोई दे सके……………बेहद उम्दा…………आज तक औरत अपने उसी घर को ढूँढ रही है और हमेशा ढूँढती रहेगी……………कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रहते हैं।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
bahut khub..badhaye ho sanjay...
bahut barhia... isi tarah likhte rahiye...
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर |
वाकई बेटी का घर या बहू का घर..आखिर कौन-सा उसका घर, सुंदर रचना
संजय जी आपके ब्लॉग पर आवश्य आयेंगे पर अभी नहीं .... कृपया इसे पढ़े
http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_243.html
धन्यवाद
@ उदय जी
@ संजय कुमार चौरसिया जी
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ...
@ वंदना जी
बिलकुल सही कहा आपने इस प्रश्न का उत्तर शायद ही कोई दे सके…
@ आदरणीया वंदना जी
मेरी पोस्ट को चर्चा मंच में शामिल करने हेतु आभार
धन्यवाद
@ Anand bhai
@ हितेंद्र कुमार गुप्ता जी..
मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
SAnjayji,
Darasal galat vyavahar evam parampra ke karan aisa hota hai.
VASTUTAH BETIAN SUI(NEEDLE)HOTI HAIN-vey peehar aur susral dono ko jodney ka karya karti hain.
BETION ka mahatv bahaut zyada hai.Prastut kavita ka aadhar aarthik hai.Pita aur sas dono ne paisa bachane ki khatir nahi B.A.karaya.
बेहतरीन रचना। नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकारें।
शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
बहुत सुन्दर रचना ... बेटी किस घर की यही मैं अक्सर सोचा करती हूँ ..और लिखा भी है... आपकी कविता बेहद सुन्दर है .. ... शुभसंध्या .. शुभनवरात्रि पर्व
सच्चाई यही है |ना तो ससुराल घर हो पाता है और मायके में तो उसे पराया धन ही समझा जाता है |पर आज के युग में घर उसका वह है जहां वह अपने पती के साथ रहती है |बहुत अच्छी लगी यह रचना |बधाई
आशा
बेहद उम्दा…………आज तक औरत अपने उसी घर को ढूँढ रही है और हमेशा ढूँढती रहेगी……………
betiyan do gharon kabhavishya hoti hai... do gharon ke beech ki kadi... do gharon ka abhimaan......
phir bhi beghar!
maarmik tathya...
sundar rachna!
जो घर अपना माना हो, पढ़ाई भी वहीं पर हो।
अच्छी कविता.
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर |
आज तो बहुत गम्भीर विषय पर लिखा । सही बात है औरत को आज तक ये समझ नही आया कि उसका घर कौन सा है। सुन्दर रचना। बधाई।
यह घर कभी नहीं मिल पाया, शायद अगली पीढ़ी ढूँढना भी नहीं चाहेगी ...
अच्छी प्रस्तुति.....
बहुत खुबसूरत रचना है ! बधाई !
@ वीना जी..
बेटी का घर या बहू का घर..आखिर कौन-सा उसका घर, सुंदर रचना
दोनों ही घर बेटी के है
...धन्यवाद
@ आदरणीय विजय माथुर जी
आपसे बिलकुल सहमत हूँ
धन्यवाद
@ महेन्द्र मिश्र जी..
@ Amit ji..
मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर
bahut si betiyon ki dil ki baat rakh diya bhai tumne.......bahut sundrta se varnan kiya hai
@ डॉ. नूतन - नीति जी..
बेटी के दोनों ही घर होते है
ब्लॉग को पढने और सराह कर उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
@ आदरणीय आशा जी..
सच्चाई यही है |ना तो ससुराल घर हो पाता है और मायके में तो उसे पराया धन ही समझा जाता है |पर आज के युग में घर उसका वह है जहां वह अपने पती के साथ रहती है |
.......आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
धन्यवाद
@ Arun c roy ji..
@ अनुपमा पाठक जी..
@ प्रवीण पाण्डेय जी..
@ वन्दना अवस्थी दुबे जी..
@ Shekhar Suman ji..
@ PRIYANKA RATHORE JI..
मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
एक पुरुष होने के बावजूद नारी की भावनाओ का इतना सुन्दर चित्रण एक अच्छा लेखक ही कर सकता है दोस्त !
बहुत बहुत बधाई दोस्त !
@ रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी
ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
...धन्यवाद
संजय भास्कर
"जुदा होकर हमसे
नया घर बसाना होगा"
बेहद संवेदनशील एवं सामयिक है.परंपरा का भार तो हम ढ़ो सकते हैं लेकिन एक बेटी का भार नहीं.ये तो हमारी बिडम्बना ही कही जाएगी .
बहुत ही कमाल की और सच्ची रचना.......निसंदेह संजय जी मैंने आपकी जितनी भी रचनाएँ पढ़ी हैं ,ये सर्वश्रेष्ठ है ........प्रशंसनीय रचना।
betiyon ki dil ki baat .......bahut sundrta se varnan kiya hai
...Sanjay ji
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर |
sab kuch kah dala aapne....
!! जय हिन्द !!
बहुत अच्छे शब्द दिये हैं इस विचार को ।
आप सभी सुधिजनों ( ब्लागरों ) को मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर
बेटियों की व्यथा...जाने कौन सा घर-अपना घर.
बहुत सुन्दरता से रखी है बात.
बधाऊ.
'अपना घर' का बहुत बड़ा प्रश्न जीवन के आखिर तक बना रहता है. बिटिया के लिए तो और भी ज्यादा. अच्छी प्रस्तुति.
धन्यवाद
@ Minakshi pant ji..
@ Rajiv Ji..
एक बेटी का भार नहीं.ये तो हमारी बिडम्बना ही कही जाएगी .....आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
@ Mahak ji..
बहुत...बहुत...धन्यवाद
@ Preeti ji..
@ डॉ. मोनिका शर्मा जी..
@ जय हिन्द जी..
@ शरद कोकास जी..
आप सभी सुधिजनों ( ब्लागरों ) को मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर
very touchy, logicaL, and unanswered question, ki aakhir bitiya jo bahu ban jati he use self rights kaha kho jata hain, wo pradheen kyun ho jati he! sundar sawal?
sanjay bhaskar ji ...aap mere blog par aaye ...rachna padhne ke liye badhaii ...comments likhne ke liye ..shukriya ...
aapne kaha aapka blog follow kar raha hun ..magar aapka naam nahi dikha ...main aapka blog LAMBU naam se follow kar raha hun ...
keep reading /writing
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ..
बहुत अच्छी रचना है भास्कर जी। वस्तुतः स्थिति अब बदलने लगी है और मानसिकतायें भी… आत्म-निर्भर और दृढ़ इच्छाशक्ति वाली इस पीढी में रुढीवादी विचारधारा को तोड़ने का दमखम दिखता है…
आपकी अन्य रचनायें भी पढीं… उत्तम सृजन एवम् भाव्… बधाई !
बेटियों के दर्द को कहती अच्छी रचना
बहुत ही संवेदनशील .........बहुत बढिया ...अब मुझे लग रहा है इतना गहरा कैसे सोचा जाता है ही .. ही... ही... ही ...ही .......
शुभकामनाये
अच्छी प्रस्तुति..
बिल्कूल सही कहा बेटिया तो दोनों घरो को अपना समझती है पर दोनों में रहने वाले उसे हमेसा पराया ही समझते है |
बेटियों के दर्द को उकेरती सुन्दर रचना..बधाई.
अच्छी प्रस्तुति.
बी ऐ तो कर लिया होता ..इतनी जल्दी शादी
kon ghar ki khau me, kon ghar ko apnau me.. maa bole "tu parai.. jha tera saasra vo hi tera basera"
ab bolo jha me kheli angan-angan vo hi na mera basera....
kon ghar ki khau me, kon ghar ko apnau me..
Amazing thinking... kaise socha is baare me aapne...???
bahut achi rachana...bhadai sanjay ji
बहुत ही सुन्दर शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
Awesome... !
har beti ki.. yahi kahani...
saare apne.. bas wahi begaani... :)
Betiyan umrbhar yahee sochati rah jatee hain ki aakhir kaunsa hai unka ghar. aap kee soch aur sanvedansheelata kabile tareef hai.
बेटी का घर या बहू का घर??????अच्छी प्रस्तुति
snjay bhaayi bhut khub bhayi roz choke chkke maar rhe ho aek beti ki vythaa or ssuraal ka zulm pdhne kaa shoq rkhne vaali betiyon ki khaani aapne apne alfaazon ki zubani jo khi he voh jivnt he or aaj ke smaj kaa aynaa he kmo besh sbhi smaaj men aesa hi ho rha he aaj hi aek femili kaa jhgda mene beth kr niptaaya he jiske jhgde ke piche mul jd aapli kvita kaa saar hi thaa bhut khub. akhtar khan akela kota rajsthan
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर |
Kaisi vidambana hai ye! Aah! Samay badalega...par na jane kab?
Behad samvedansheel rachana likhi hai....aur chuninda shabdon ke istemaal se!
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर |
संजय जी बहुत चोट खायी बात कह गए ......!!
don't worry.
best time will come.
just need to wait for it.
उम्दा लेखन के लिए बधाई.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
धन्यवाद
@ समीर लाल जी..
@ भूषण जी..
'अपना घर' का बहुत बड़ा प्रश्न जीवन के आखिर तक बना रहता है
.....आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
@ अलोक खरे जी..
@ बबन पांडये जी..
@ मयंक भरद्वाज जी..
ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
...धन्यवाद
संजय भास्कर
@ रवि शंकर जी..
@ संगीता स्वरुप ( गीत ) जी..
@ मंजुला ने जी..
@ ZEAL JI..
@ अंशुमाला जी..
बिल्कूल सही कहा बेटिया तो दोनों घरो को अपना समझती है पर दोनों में रहने वाले उसे हमेसा पराया ही समझते है |.....आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
@ के के यादव जी..
@ परमजीत सिँह बाली जी..
@ अरविन्द मिश्रा जी..
आप सभी सुधिजनों ( ब्लागरों ) को मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर
@ सुमन अनुरागी जी
बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर शब्द कविता में देने के लिए ।
@ zindagi-uniquewoman.blogspot.com
अर्चना धनवानी जी
@ सदा जी ..
@ नन्हीं लेखिका - Rashmi Swaroop ji
आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर
@ आदरणीय आशा जोगलेकर जी..
मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
@ रचना दीक्षित जी..
@ अख्तर खान अकेला जी..
.....आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
@ आदरणीय क्षमा जी
आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर
Beti kee ye he sachchai hai
bahut achchi kavita hai
अपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।
जानवरों में लड़ाई पर टिप्पणी के लिए आभार!
प्रभाव पूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें!
बहुत अच्छा लिखा है संजय जी .... असल में तो बेटियों के दो दो घर होने चाहिएं ... पर क्या समाज है उसको एक घर भी पूरा नही मिल पाता ....
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! उम्दा प्रस्तुती!
yahi to widambana hai beti ki koun sa hai uskaa ghar... par shayad bhagwaan ladkee ko itane sahanshaktee deta hai ke wo apne dono kandhon mein dono gharon ko aur unkee izaat ko sambhaal sake...
Sach Betiyo ka koi b ghar apna nahi hota
Bachpan se parayi amanat samajhaa jata hai
Aur Sasuraal to............
Par ab kuchh pariveratan ho rha hai
Betiya b apne pairo par khadi ho rahi hai
Fir b kahalati to parayi aamanat hi hai
@ हरकीरत ' हीर' जी..
@ चन्द्र कुमार सोनी जी..
@ दीपक सैनी जी..
@ हास्यफुहार जी..
@ अनीता जी..
मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
@ दिगम्बर नासवा जी..
असल में तो बेटियों के दो दो घर होने चाहिएं
.....आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
@ बबली जी..
@ पूजा जी..
.....आपसे बिलकुल सहमत हूँ |
@ शैवालिका जोशी जी..
आप सभी सुधिजनों ( ब्लागरों ) को मेरी रचना सराहने और उत्साहवर्धन एवं शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
आशा है आगे भी आपका स्नेह, सहयोग और मार्गदर्शन मिलता रहेगा.
सादर,
संजय भास्कर
बहुत गहन भाव है इस रचना में बहुत अच्छी प्रस्तुति !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सार्थक। विचारोत्तेजक।
हर घर में बेटी की
होती यही कहानी,
ना पिता के घर की,
ना ही ससुर के घर की,
हर घर को वही बनाती
फिर भी होती है वो पराई.......
बहुत ही अच्छा लिखा है संजय जी..
बधाई
bilkul sahi chitrankan.soch par vivas karti ki vastav me uska apna ghar koun sa hai ,jise chhod aai ya fir jise uska jivan bha ka nata jod diya gaya.
sajay ji aapki yah post bahut se sawal uthati hai.itani achhi prastuti ke liye hadik badhai.
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
poonam
बहुत ही गहरा सवाल... आज घर की देबी ही बेघर है..
www.srijanshikhar.blogspot.com पर " क्योँ जिन्दा हो रावण "
bahut bahut sunder prastuti........
betiyo kee aapbeetee ko shavd dene ke liye.....
Aabhar
आप बहुयामी विषयों पर उम्दा रचनाएं देते हैं. बेहतर रचना दोस्त.
लिखते रहिए.
अपने घर ???
उम्दा लिखा है संजय जी..
संजय जी ...बहुत ही बढ़िया पोस्ट .
संजय जी सबसे पहले तो धन्यवाद कि आप मेरे ब्लोग को अपने क़ीमती समय से कुछ समय निकाल कर पढ़ते हैं...आज मैने भी आपकी कई रचनाऐं पढ़ी अच्छा लिखते हैं आप , आपकी लिखी अपना घर कविता बहुत मार्मिक लगी उसकी अंतिम पंक्ति
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर | गज़ब है....बेहतरीन लेखन के लिए बधाई .....
बबिता अस्थाना
बेटी ने सोचा और समझा
कौन सा है मेरा घर
या फिर बेटिया दुनिया में
होती है ........बे घर
bahut umda kriti ............ek sarthak prayas kahu ya sawla kahu dono me hi aapne kaha hai ............
देखा जाये तो बेटियो का दो दो घर होता है...
पर परीस्थितीय ऐसी होती है कि दो घर होने के बावजुद वो अपने आप को
अकेला महसूस करती है.....क्युंकी उन्हे समझनेवाला कोई नही होता है....
बेटियो के दर्द को व्यक्त करती सत्य ओर सटीक रचना है....
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