22 फ़रवरी 2010

पहचानिए निज भाषा के महत्व को

 


संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अध्ययन के मुताबिक 5300 भाषाओं/बोलियों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। अगर इस वैश्विक भाषा संकट को न भी समझ पाएं, तो भी अपने इर्द-गिर्द हम ऐसे तमाम समुदाय देख सकते हैं, जहां नई पीढ़ी अपनी पारंपरिक सामुदायिक भाषा को या तो भूलती जा रही है या पूरी तरह से भूल चुकी है।
भाषाओं और बोलियों पर यह संकट बहुत छोटे स्तर से शुरू होकर बहुत बड़े स्तर तक फैल रहा है। जाहिर है सबसे ज्यादा संकट मातृभाषाओं या निज-बोलियों पर ही है। सवाल है एक ऐसे दौर में जब दुनिया फैलती जा रही है, सरोकार वैश्विक हो रहे हैं, इंटरैक्शन ग्लोबल हो चुका है।
 कहने का मतलब यह है कि बड़े स्तर पर जहां पूरी दुनिया में एकरूपता आ रही है, वहीं स्थानीय स्तर पर या कहें छोटे स्तर पर देशों के अंदर भी इसी तरह की अंतर्देशीय एकरूपता अथवा समरूपता आ रही है। इस समरूपता ने कई चीजों को सार्वभौम बनाया है। मसलन खानपान, पहनावा, काम-धंधे और शिक्षा-दीक्षा के साथ-साथ संपर्क की भाषा को भी एकरूपता देने की कोशिश की गई है।
मातृभाषा दरअसल वह भाषा होती है, जिसमें हम सबसे पहले संपर्क करना या संवाद करना सीखते हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि किसी की मातृभाषा वही हो जो उसकी मां की हो, क्योंकि ज्यादातर यह देखने को मिलता है कि मां के बजाए पिता की भाषा ज्यादा वर्चस्वशाली होती है, खासकर भारत जैसे पारंपरिक पुरुषवादी समाज में तो यही बात देखने को मिलती है।
मातृभाषाएं कम से कम भारत जैसे देश में तो विशुद्ध रूप से मातृभाषा ही नहीं होती, वह स्थानीय व कबीलाई भाषा होती हैं। चूंकि इन भाषाओं में बाजार, कारोबार, पढ़ाई और औपचारिक रिश्तों का संपर्क या तो है ही नहीं या बहुत कम है। इसलिए भी यह भाषाएं सिर्फ मौखिक भाषाएं बनकर रह गई हैं और अब जबकि मौखिक स्तर पर भी इन भाषाओं का कम इस्तेमाल हो रहा है तो जाहिर है कि विलुप्त होने की तरफ बढ़ेंगे ही।

14 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सन्देश देते हुए बेहतरीन प्रस्तुती! मेरा तो ये मानना है कि राष्ट्रभाषा जानना जितना ज़रूरी है उतनी ही ज़रूरी है मातृभाषा सीखना, पढ़ना और लिखना! पर आजके ज़माने में बहुत कम देखने को मिलता है जिन्हें अपनी मातृभाषा यानि गुजराती, पंजाबी या तमिल लिखना आता हो जो अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़े हों! मेरे कई दोस्त हैं जिन्हें बंगला बोलना तो आता है पर लिखना पढ़ना नहीं आता! पर मैंने अंग्रेजी मीडियम में पढ़ने के बावजूद भी घर में अपनी दादीमा से बंगला भाषा सिखा है और मुझे इस बात का गर्व है !

मनोज कुमार ने कहा…

हम तो भाई बिहार में पढे, जहां माध्यमिक तक तो मतृभाषा यानी बिहारी भाषा में ही पढ़ाई होती है। और उसको बिल्कुल्ले संभाले रक्खा हूँ।

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत ही प्रासंगिक और प्रेरक आलेख।

रानीविशाल ने कहा…

बहुत ही अच्छे लक्ष्य के साथ आपने ये आलेख लिखा है, जो सामयिक है! किन्तु यह भी एक बड़ा सत्य है कोई कोई भी भाषा भाषा प्रेमियों के दम पर ही आगे बड़ी है , आलोचकों के दम पर नहीं !! अतः भाषा के विस्तार के लिए चेतना की आवश्यकता है आलोचना की नहीं !!
इस बढ़िया लेख के लिए बधाई !!

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सही कहा , अपनी जड़ों को संभाले रखना बहुत ज़रूरी है।
आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणात्मक लेख।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढ़िया आलेख। धन्यवाद।

ज्योति सिंह ने कहा…

sahi kaha apni sanskriti sambhalna jaroori hai use mitne se bachana hoga

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Udan Tashtari ने कहा…

सार्थक आलेख.

Dev ने कहा…

बहुत बढ़िया लेख ....

अनुनाद सिंह ने कहा…

यह भाषा-कैसर का रोग बहुत घातक है। इसके मूल कारणों का गहराई से पता लगाकर उसके लिये टीके-वैक्सीन की व्यवस्था करनी चाहिये। केवल रोग-रोग कहकर रोने मात्र से रोगी कालकवलित हो जायेगा।

अभी तक अंग्रेजों और कम्युनिस्टों ने भारत में यही प्रचार कर रखा है कि संस्कृत 'मर' गयी क्योंकि वह केवल 'पण्डित' वर्ग की भाषा थी; उसका व्याकरण, गणित की तरह 'यांत्रिक' और 'कठोर' बना दिया गया; वह बहुत क्लिष्ट भाषा थी आदि। यदि यह सही था तो उस समय की तथाकथित जनभाषाएँ - पालि और प्राकृत आदि का देवलोकगमन कैसे हो गया? कोई यह भी तो पूछे कि लैटिन की मृत्यु क्यों हो गयी? और हजारों भाषाएँ प्रतिवर्ष काल के गाल में क्यों जा रही हैं?

स्पष्ट है कि संस्कृत की मृत्यु के बारे में जो 'मॉडल' दिया गया है वह गलत है और राजनीति से प्रेरित है। इसीलिये हमे 'वास्तविक' कारणों की खोज करनी होगी। भाषावसान का समग्र और प्रभावी मॉडल बनाना पड़ेगा। तभी इस रोग से लड़ा जा सकेगा।

ज़मीर ने कहा…

आपका यह लेख बहुत ही अच्छा लगा.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अच्छा लिखा है .. मातृ भाषा हर इंसान को ज़रूर आनी चाहिए ... और इसको बचा कर रखना हम सब की ज़िम्मेवारी है ...

Unknown ने कहा…

अच्छा लिखा है ..