गांव-देहात के बागों की हरियाली, रंग-बिरंगे खिलखिलाते फूल और उनपर मंडराती रंग-बिरंगी तितलियां! इस खूबसूरत मंजर को देखकर सारी थकान छू मंतर हो जाती थी लेकिन वक्त बदला तो आबोहवा भी बदल गई। अब इन फूलों पर तितलियां नहीं मंडरातीं। बागबां हैरान-परेशान है। प्रकृति की इस अनोखी छटा को दीदार के लिए तरसती हैं अब आंखें।
दरअसल अब गौरैया, चील व गिद्ध के बाद तितलियां भी कम दिखती है। आम तौर पर वसंत के दिनों में रंग-बिरंगी आकर्षक तितलियां सहज ही लोगों का मन मोह लेती थीं। नीली, पीली, हरी, काली, सफेद, बैंगनी वगैरह-वगैरह तमाम रंगों में पंख फैलाए फूलों का रस चूसती तितलियों को देख बच्चे उसे पकड़ने के लिए घंटों मशक्कत करते थे। यहां तक कि बड़े भी इन तितलियों के आकर्षण पाश में बंध कर खिलखिलाते थे। अब ये सारी बातें इतिहास बनती जा रही है।
26 टिप्पणियां:
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है उम्दा रचना
सही कहा आपने .....वक्त के साथ सब कुछ बदलता जा रहा है .......हम भी बचपन में इन तितलियों को पकड़ने की लिए खूब मस्कत करते है ....बड़े सुहाने होते थे वो दिन
भाई अब ये फ़ूल भी हाईब्रीड किस्म के होगये हैं...तितलियां भि अब शायद अपना अस्तित्व बचा पायें तो काफ़ी होगा.
रामराम.
बिलकुल सही कहा आपने
सुन्दर चित्रों के साथ
आभार ..............
सही कहा आपने , सार्थक लेख
तितिलियों का मडराना कभी मौसम का उनके संघ जाना
लगता हैं की आपका इनसे रिश्ता पुराना
इन्ही बातों से दुनिया को रूबरू कराना
अच्छा हैं आपका अंदाज हमने माना|
ab to tarsati aankhen hi zindagi kahlati hain
सच कहा .. जैसे जैसे मानव अपना विकास करेगा ... बहुत कुछ इतिहास में बदलता जाएगा ...
हां संजय जी आपकी बात बिल्कुल ठीक है अब तितलियां कहां दिखती हैं ..इंसान की आधुनिकता का दुष्परिणाम अब दिखने लगा है
अजय कुमार झा
तितलियों का नज़र ना आना घोर चिंता का विषय है...उन्हें हर हाल में बचाना चाहिए...
नीरज
तितलियाँ क्यों आयेंजी आपने उनके घर कहाँ महफूज़ रखे हैं बहुत अच्छी रचना ।बेता जब तुम छोटे थे तब होती थी रंग बिरंगी तितलियां । ऐसे ही लिखते रहो । आशीर्वाद्
आपने बिल्कुल सही लिखा है ...आज पर्यावरण की जो हालत है उसके चलते कहीं भी अब हरियाली नजर नही आती.... अच्छी सामयिक पोस्ट लिखी है...
सच है. अब पक्षी दुर्लभ और जन्तु नगण्य हो गये हैं. सुन्दर पोस्ट.
बहुत ही सार्थक पोस्ट । सुन्दर……
सच कहा आपने.
मगर इस देश में (कनाडा) अभी भी बहुत दिखती हैं.
तुमने तो बरसीन के खेत की याद दिला दी। गाँव में फूल कहाँ होते थे। बस बरसीन या सरसों के फूलों पर मंडराते तितलियाँ देखना बेहद प्यारा लगता था। बरसीन भैंस का हरा चारा...और सरसों से तो आप वाकिफ होंगे।
सही फ़रमाया। अब तो चिड़ियाँ भी नज़र नहीं आती।
और गुलाबों में भी खुशबू कहाँ।
इंसानी उन्नति की अवनति।
बिल्कुल सही फ़रमाया है आपने ! बहुत खूब! अत्यंत सुन्दर प्रस्तुती! बहुत ख़ूबसूरत तस्वीरें!
सही कहा है पर कई बार तो ऐसा भी लगता है की इंसानों की प्रजाति भी दुर्लभ होती जा रही है, आस पास जो भी मिलता कभी चोर,कभी उच्चका कभी आतंकवादी कभी भ्रष्ट
sach kaha aapne... ab to aankhon ke sath dil bhi taras gaye hai titliyon ko dekhne ke liye...
बिलकुल सही कहा आपने
सुन्दर चित्रों के साथ
आभार ..............
तितलियां अब कहां दिखती पड़ती हैं
कंक्रीट के जंगल में गुम हो गयीं हैं
कितनी सुहाती थीं ये तितलियाँ बचपन में
बहुत सुन्दर पोस्ट
शुभ कामनाएं
prakti ki sundarata dhalti jaa rahi hai inki kamiyon ke badhne se .
waqt bahut kuch badal deta hai,
lekin sundar ehsaas kabhi nhi marte,
aapka blog bahut hi sundar hai,
badhai
बिल्कुल सही फ़रमाया है आपने ! बहुत खूब!
आपने बिल्कुल सही लिखा है ...आज पर्यावरण की जो हालत है उसके चलते कहीं भी अब हरियाली नजर नही आती
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